Book Title: Dharmratna Karanda Tika Part 01
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
View full book text
________________ धर्मः | पुण होश नाम चनतीसा // नरयगई तिरियगई / एसिं चिय पाणुपुवीन // 7 // एगिंदिया चनरों / जाई बीया कम्मसंघयणा // एवं संगणवि य / वन्नाश्चनकमपस // 7 // नवघायं | कुविहगई। थावरसुहुमं तहा अपज्जतं // साहारणा थिराऽसुन्न-मसुजगदूसर अणाऊं // 10 // अङसकित्ति य तहा / तिएहं एक्केक्कियत्ति अपसबा // गोयानवेयणिका–णुपावमेक्के किया पगई // 11 // नीय गोत्तं निरया-जयं च असायवेयणिज्जं च // एया सवामिलिया / बाप्तीई पावपगईनं // 15 // तथा अवयं पापमेव हिंसादि अधर्म हेतुकत्वेन, तदप्यधर्मः. दुःकृतं दुष्टं कृतं पुःकृतं, मुरध्यवसायनिमित्तकत्वादेतदप्यधर्मः. दुरनुष्टानं पुष्टं हिंसादिमहारंन्नादिरूपमनुष्टानमशुजप रिणामप्रवृत्तिकत्वादिदमप्यधर्म एव. श्त्याद्या एवंप्रभृतयः, श्रादिशब्दाद्दुश्चरितदुश्चेष्टितादिग्रहः. श. ब्दा ध्वनयस्तुल्यार्था एकार्था जवंतीति श्लोकहयसमासार्थः. अथ धर्माधर्मयोर्बाह्यांतरहेतू नुपदर्श यन् श्लोकषटकमाह // मूलम् ॥–मानुष्यं शोचनो देशः / शुजा जातिः शुनं कुलं / सुरूपं दीर्घमायुष्य-मा. रोग्यं बुझिपाटवं // 1 // कल्याणमित्रसंसर्गः / पापमित्रविवर्जनं // शुश्रूषा सुश्रुतिश्चैव / सुकसत्रा Jun Gun Aaradhak Trust PP.AC.Gunratnasuri M.S.

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 404