Book Title: Dharmik Sahishnuta aur Jain Dharm Author(s): Sagarmal Jain Publisher: Prachya Vidyapith ShajapurPage 28
________________ उत्तराध्ययनसूत्र में हम देखते हैं कि भगवान् पार्श्वपाथ की परम्परा के तत्कालीन प्रमुख आचार्य श्रमणकेशी और भगवान् महावीर के प्रधान गणधर इन्द्रभूति गौतम जब संयोग से एक ही समय श्रावस्ती में उपस्थित होते हैं तो वे दोनों परम्पराओं के पारस्परिक मतभेदों को दूर करने के लिए परस्पर सौहार्द्रपूर्ण वातावरण में मिलते हैं। एक ओर ज्येष्ठकुल का विचार कर गौतम स्वयं श्रमणकेशी के पास जाते हैं तो दूसरी ओर श्रमणकेशी उन्हें श्रमणपर्याय में ज्येष्ठ मानकर पूरा समादर प्रदान करते हैं। जिस सौहार्दपूर्ण वातावरण में वह चर्चा चलती है और पारस्परिक मतभेदों का निराकरण किया जाता है वह सब धार्मिक सहिष्णुता और उदार दृष्टिकोण का एक अद्भुत उदाहरण है। दूसरी धर्म परम्पराओं और सम्प्रदायों के प्रति ऐसा ही उदार और समादर का भाव हमें आचार्य हरिभद्र के ग्रंथों में भी देखने को मिलता है। हरिभद्र संयोग से उस युग में उत्पन्न हुए जब पारस्परिक आलोचना-प्रत्यालोचना अपनी चरम सीमा पर थी। फिर भी हरिभद्र न केवल अपनी समालोचनाओं में संयत रहे अपितु उन्होंने सदैव ही अन्य परम्पराओं के आचार्यों के प्रति आदरभाव प्रस्तुत किया । शास्त्रवार्तासमुच्चय उनकी इस उदारवृत्ति और सहिष्णुदृष्टि की परिचायक एक महत्त्वपूर्ण कृति है । बौद्ध दर्शन की दार्शनिक मान्यताओं की समीक्षा करने के उपरान्त वे कहते हैं कि बुद्ध ने जिन क्षणिकवाद, अनात्मवाद और शून्यवाद के सिद्धान्तों का उपदेश दिया, वह वस्तुत: ममत्व के विनाश और तृष्णा के उच्छेद के लिए आवश्यक ही था। वे भगवान् बुद्ध को अर्हत्, महामुनि और सुवैद्य की उपमा देते हैं और कहते हैं कि जिस प्रकार एक अच्छा वैद्य रोगी के रोग और प्रकृति को ध्यान में रखकर एक ही रोग के लिए भिन्न-भिन्न औषधि प्रदान करता है, उसी प्रकार भगवान् बुद्ध ने अपने अनुयायियों के विभिन्न स्तरों को ध्यान में रखते हुए इन विभिन्न सिद्धान्तों का उपदेश दिया है। ऐसा ही उदार दृष्टिकोण वे सांख्य दर्शन के प्रस्तोता महामुनि कपिल और न्यायदर्शन के प्रतिपादकों के प्रति भी व्यक्त करते हैं। कपिल के लिए भी वे महामुनि शब्द का प्रयोग कर अपना आदर भाव प्रकट करते है। विभिन्न विरोधी दार्शनिक विचारधाराओं में किस प्रकार संगति स्थापित की जा सकती है इसका एक अच्छा उदाहरण उनका यह ग्रन्थ है। ____12वीं शताब्दी के प्रसिद्ध जैनाचार्य हेमचन्द्र ने भी इसी प्रकार धार्मिक सहिष्णुता और उदारवृत्ति का परिचय दिया है। उन्होंने न केवल भगवान् शिव की धार्मिक सहिष्णुताऔर जैनधर्मः 27 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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