Book Title: Dharm Sab Kuch Hai Kuchbhi Nahi Author(s): Tulsi Acharya Publisher: Jain Shwetambar Terapandhi Sampraday View full book textPage 7
________________ [ ३ ] इस समय मानव-समाजके सामने जटिल समस्याओंका तांता सा जुड़ा हुआ है-यह सब जानते हैं। अन्न और उसकी कमी, तथा दारिद्रय श्रादि समस्याओंको गिन-गिन कई व्यक्तियोंने सम्भवतः अंगुलियां घिस डालीं। किन्तु मेरी दृष्टि में मानसिक समस्या जैसी जटिल है वैसी जटिल दूसरी कोई भी नहीं है। दूसरी समस्याएँ इसके आधार पर टिकी हुई हैं। मानसिक समस्थाके मिटने पर अन्न, वस, दारिद्रय आदि की समस्याएँ आज सुलझ सकती है। शिक्षामें आध्यात्मिक तत्त्व आ जाय, लोग संयमी पुरुषोंको सबसे महान् समझने लग जाय तो ये सब समस्याएँ उनके कारण अपनी मौत मर जाय-यह मुझे विश्वास है। पुराने जमानेमें जब संयमको लोग धनसे अधिक मूल्यवान् समझते थे, तब जनतामें संग्रहकी भावना प्रबल नहीं होती थी। हिंसा, परिग्रह आदि जब जनताके जीवन-निर्वाहकी परिधिको लांघकर तृष्णाके क्षेत्रमें आ जाते हैं तब सामूहिक अशान्तिका जन्म होता है। इसलिए धार्मिक पुरुष उनकी इयत्ता करें-सीमा करें और दूसरोंसे करवावें-यही सबके लिए श्रेयस्-मार्ग है। 'अमुक परिमाणसे अधिक हिंसा मत करो, संग्रह मत करो' ऐसा व्यापक प्रचार किया जाय तो धर्मकी छत्रछायामें जगतकी सारी गुत्थियां सुलम जायं, ऐसो मेरी धारणा है। विषयका उपसंहार करते हुए यदि मैं कहूं तो यही कहूंगा कि यदि धर्मका आचरण किया जाय तो वह विश्वको सुखी करनेके लिए सर्वशक्तिमान् है और यदि धर्मका आचरण न किया जाय तो वह कुछ भी नहीं कर सकता। इसलिए धर्मका अन्वेषण करनेवालोंको आत्मनियन्त्रणका अभ्यास करना चाहिए-इसीसे धर्मकी सफल भाराधना हो सकती है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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