Book Title: Dharm Sab Kuch Hai Kuchbhi Nahi
Author(s): Tulsi Acharya
Publisher: Jain Shwetambar Terapandhi Sampraday

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Page 5
________________ ' शान्ति और अशान्ति दोनों का पिता मानव है। अन्तजगत् में शान्तिका अविरलं. स्रोत बहता है फिर भी बाहरी वस्तुओंके लुभावने आकर्षणने मानवंका मन खींच लिया। अब वह उनको पानेकी धुनमें फिर रहा है, बस यहीं अशान्तिका जन्म होता है। मानव अपने आपको भूल जाता है, शान्ति भी अपना मुंह छिपा लेती है। आजका मानव कस्तूरीवाले हरिकी भांति शांतिकी खोजमें दौड़-धूपं कर रहा है किन्तु उसे समझना चाहिये कि शान्ति अपने आपमें साध्य और अपने आपमें साधन है। वह कहीं वाह्मजगत्में नहीं रहती और न बाहरी वस्तुओंसे वह मिल भी सकती है। यह धार्मिक सम्मेलन फिर इस तत्त्वको जनताके हृदय तक पहुंचाए, यह मेरी हार्दिक अभिलाषा है। एष्णाका मास बना हुआ मानव सार्वभौम चक्रवर्ती होने पर भी सुखी नहीं होता और सन्तोषी मानव अकिंचन होते हुए भी सुखी रहता है, इससे जाना जाता है कि परिप्रहमें शान्ति नहीं है। भगवान महावीरने कहा है, 'परिग्रह जैसा दूसरा कोई बंधन नहीं।" संसारी प्राणी सर्वथा अपरिग्रही बन जायं, यह दुरूह कल्पना है फिर भी यदि वे जीवनके साधनोंको कमसे कम करनेकी चेष्टा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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