Book Title: Dharan Vihar Chaturmukh Stava Author(s): Vinaysagar Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 3
________________ ६० अनुसन्धान ४५ संघपति ने ज्योतिषियों को बुलाया और उनके आदेशानुसार संवत् १४९५ माघ सुदि १० को इसका शिलान्यास / खाद मुहूर्त करवाया । मन्दिर की ४६० गज की विशालता को ध्यान में रखकर गजपीठ का निर्माण करवाया गया । (पद्य १-६) भविजनों के आने-जाने के लिए मन्दिर के चारो दिशाओं में चार दरवाजे बनवाए। पीठ के ऊपर देवछन्द बनवाया और चारों दिशाओं में सिंहासन स्थापित किए । चारों दिशाओं में ४१ अंगुलप्रमाण की ऋषभदेव की प्रतिमा स्थापित की और संवत् १४९८ फाल्गुन बहुल पंचमी के दिन श्रीसोमसुन्दरसूरिजी से प्रतिष्ठा करवाई । (पद्य ७-९) चारों शाश्वत जिनेश्वरों की प्रतिमाएँ विमलाचल, रायणरूंख, सम्मेतशिखर, अष्टापदगिरि और नन्दीश्वरद्वीप की रचना कर ७२ बिम्ब स्थापित किए। दूसरी भूमि में देवछन्द और मूल गम्भारों में उतनी ही प्रतिमाएं स्थापित की। यहाँ ३१ अंगुल की मूर्तियाँ थी । चारों दिशाओं और विदिशाओं में आदिनाथ भगवान की मूर्तियाँ स्थापित की गई । तृतीय भूमि अर्थात् तीसरी मंजिल पर इक्कीस अंगुल की प्रतिमाएँ विराजमान की गई और मूर्तियों का पाषाण मम्माणी पाषाण ही रहा । तृतीय मंजिल के शिखर पर ३६ गज का शिखर बनाया गया । ११ गज का कलश स्थापित किया गया और लम्बी ध्वजपताका पर घुंघरुओं की घण्टियाँ लगाई गई । ( १०-१५) त्रात्र सोलवें वस्तु छन्द में पद्याङ्क ७ से १५ सारांश दिया गया है । यह मन्दिर चहुमुख है । स्तम्भों की कोरणी कलात्मक है । मण्डप में तीन चौवीसियों की स्थापना की गई है । मन्दिर की शोभा इन्द्रविमान के समान है । ४६ पूतलियाँ लगाई गई है । अन्य देशों के यात्री संघ आते हैं, महोत्सव करते हैं और प्रसन्न होते हैं । मेघ मण्डप दर्शनीय है। तीन मंजिलों पर तीर्थंकरों ने यहाँ अवतार लिया हो इस प्रकार का यहाँ प्रतीत होता है मन्दिर में भेरी, भुंगर, निशाण आदि की प्रतिध्वनि गूंजती रहती है । गन्धर्व लोग गीत - गान करते हैं । ऐसा प्रतीत होता है कि मन्दिर के सन्मुख बारह देवलोक की गणना ही क्या है ? (पद्य १७ - २१) 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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