Book Title: Dharan Vihar Chaturmukh Stava
Author(s): Vinaysagar
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 1
________________ ५८ पण्डित विशालमूर्ति रचित श्रीधरणविहार चतुर्मुखस्तव म. विनयसागर विश्व प्रसिद्ध तीर्थस्थलों में आबू तीर्थ के अतिरिक्त शिल्पकला की सूक्ष्मता, कोरणी और स्तम्भों की दृष्टि से राणकपुर का नाम लिया जाता है। धरणिगशाह ने पहाड़ों के बीच में जहाँ केवल जंगल था वहाँ त्रिभुवनदीपक नामक / धरणिकविहार जैन मन्दिर बनवाकर तीर्थयात्रियों की दृष्टि में इस तीर्थ / स्थान को अमर बना दिया । अमर बनाने वाले श्रेष्ठी धरणाशाह और तपागच्छके आचार्य सोमसुन्दरसूरि का नाम युगों-युगों तक संस्मरणीय बना रहेगा । अनुसन्धान ४५ इस तीर्थ से सम्बन्धित पण्डित विशालमूर्ति रचित श्रीधरणविहार चतुर्मुख स्तव प्राप्त होता है । जिसका संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है : प्रतिका माप २५ x ११ से.मी. है। पत्र संख्या ३ है । प्रति पृष्ठ पंक्ति संख्या १३ हैं और प्रति पंक्ति अक्षर लगभग ३६ से ४० हैं । स्थानस्थान पर पडीमात्रा का प्रयोग किया गया है । लेखन प्रशस्ति इस प्रकार है : Jain Education International सं० लाखाभा० लीलादे पुत्री श्रा० चांपूठनार्थं । लिखतं पूज्याराध्य पं० समयसुन्दरगणिशिष्य पं० चरणसुन्दरगणि शिष्य हंसविशालगणिना । इसका समय १६वीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध माना जा सकता है । प्रान्त पुष्पिका में समयसुन्दर गणि का शिष्य चरणसुन्दर लिखा है । गुरु और शिष्य दोनों सुन्दर हैं अतएव ये दोनों खरतरगच्छ के हों ऐसी सम्भावना नहीं है । सम्भवतः सोमसुन्दरसूरि के समय ही उनकी शिष्य-प्रशिष्य परम्परा में हों । इस स्तव के कर्ता पण्डित विशालमूर्ति के सम्बन्ध में कोई परिचय For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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