Book Title: Dharan Vihar Chaturmukh Stava
Author(s): Vinaysagar
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 10
________________ सप्टेम्बर 2008 रायराणा मनि चीतवई ए मा० ए किसुं देव काम शास्त्र माहि इम बोलीइ ए मा० त्रिभुवनदीपक नाम // 281 पाष(?छ)लि साल सोहामणु ए मा० कोसीसे सुविसाल जाणे महियलि मंडिउ ए मा० समोसरण चउसाल तिर्हि ऊपरि गजसिंहला ए मा० सोहई चिहुं दिसि पोलि तिहिं आगलि हिव चाहिए ए मा० पावडिया रांउलि // 29 // साठि चतुर्मुख सासताए मा० ते छइ देवहगम्मु तेहजा मलि एकसट्टिमु ए मा० धरणागर अतिरम्मु राणिगपुरि मंडावीउ ए मा० नित नित उच्छव रंग दानव मानव देवता ए मा० पूज रचई नितु चंग // 30 // तवगच्छनायक युगपवर मा० सोमसुंदरसूरि सीस विशालमूरति पण्डित तणा ए मा० सेवित पइ निसिदीस इणपरि भगतई वन्निउ ए मा० ए श्रीय धरणविहार भणतां गुणतां संपजई ए मा० सासइ सुक्ख संभार सुणिसुंदरि // 31 // इतिश्रीधरणविहारचतुर्मुखस्तवः / समाप्तं / शुभं भवतु / / सं० लाखाभा० लीलादे पुत्री श्रा० चांपूपठनार्थं // लिखतं पूज्याराध्य पं० समयसुन्दरगणिशिष्य पं० चरणसुन्दरगणि शिष्य हंसविशालगणिना / / [नोंध : काव्य के अन्तिम पद्य में आनेवाली 'विशालमूरति पण्डित तणा ए, सेक्ति पइ निसिदीस' इस पति से यह रचना श्रीविशालमूर्ति के शिष्यने की हो ऐसा प्रतीत होता है / -शी] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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