Book Title: Devsur Sangh Samachari Author(s): Nandighoshsuri Publisher: Nandighoshsuri View full book textPage 2
________________ ।। श्री गौतमस्वामिने नमः ।। ।। श्री कुन्थनाथाय नमः || || नमो नमः श्री गुरुनेमिसूरये ।। श्री कुन्थुनाथ जैन देरासर पिढी, व सान्ताक्रुझ श्वेताम्बर मूर्तिपूजक तपगच्छ जैन संघ,सान्ताक्रुझ, (पश्चिम), मुंबई-400 054 हस्तक सभी धर्मस्थानक - देरासर, उपाश्रय, आयंबिलशाळा आदि की व्यवस्था वि. सं. 1992 के पूर्व प्रस्थापित श्रीविजयदेवसूरसंघ की सुविशुद्ध शास्त्र व परंपरानुसारी सामाचारी अनुसार ही करने का है और उनके हस्तक सभी स्थान उपाश्रय आदि में आनेवाले सभी साधु-साध्वी को निम्नोक्त नियमों का पालन करना आवश्यक है । उसके विरुद्ध जाहिर में और खानगी में आचरणा व प्ररूपणा करना मना है । 1. बारह पर्व तिथियों की क्षय-वृद्धि करना मना है । 2. श्री विजय देवसूरसंघ सामाचारी में माननेवाले आचार्यों द्वारा संमेलन में किये गये ठराव अनुसार संवत्सरी महापर्व की आराधना करना । 3. नवांगी गुरुपूजन मत कराना । 4. पाक्षिक, चातुर्मासिक व संवत्सरी प्रतिक्रमण के अंत में संतिकरं स्तोत्र का पाठ करना । 5. जन्म संबंधी सुतक में सगोत्र जन्म हो, पत्नी अपने मायके में हो और वहाँ कोई जाता न हो तो 12 दिन प्रभुपूजा मत करना । और साधु-साध्वी को आहार-पानी वहोराना मत । सामायिक व प्रतिक्रमण में सूत्र जोर से मत बोलना । सुतकवाली स्त्री को व बालक को स्पर्श करते हो तो 42 दिन प्रभुपूजा आदि मत करना । मरण के सुतक में सगोत्र हो तो 12 दिन, सगोत्र न हो और मृतक का स्पर्श किया हो तो 3 दिन और परंपरित स्पर्श हुआ हो तो 24 घंटे तक पूजा मत करना, सामायिक प्रतिक्रमण में सूत्र जोर से मत बोलना । मृत्यु के बारह दिन बाद ही अंतराय कर्म की पूजा, भावयात्रा, पूजन आदि कराना 7. सूर्यग्रहण या चंद्रग्रहण के वख्त देरासर मांगलिक रखना । 8. गुरुपूजन का द्रव्य गुरु वैयावच्च में ले जाना । 9. चातुर्मास में सिद्धाचल-शत्रुजय की यात्रा मत करना और करने की प्ररूपणा भी मत करना । भवदीय मेनेजिंग ट्रस्टीश्री श्री कुन्थुनाथ जैन देरासर पिढी व श्री सान्ताक्रुझ श्वे. मूर्तिपूजक तपगच्छ जैन संघ. सान्ताक्रुझ, (पश्चिम)बम्बई-400054Page Navigation
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