Book Title: Devsur Sangh Samachari Author(s): Nandighoshsuri Publisher: Nandighoshsuri View full book textPage 1
________________ ।। श्री गौतमस्वामिने नमः ।। ।। श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथाय नमः ।। ।। नमो नमः श्री गुरुनेमिसूरये ।। श्री शंखेश्वरपार्श्वनाथ जैन देरासर पिढी दौलतनगर, बोरीवली (पूर्व), मुंबई-400 066 हस्तक सभी धर्मस्थानकदेरासर, उपाश्रय, आयंबिलशाळा व श्री केशरीयाजीनगर, पालीताणा आदि की व्यवस्था इसके प्रेरक प. पू. शासनसम्राट तपागच्छाधिपति आचार्य भगवंत श्रीविजयनेमिसूरीश्वरजी म. सा. के पट्टधर प. पू. कविरत्न पीयूषपाणि आचार्य श्रीविजय अमृतसूरीश्वरजी म. सा. की आज्ञानुसार श्रीविजयदेवसूरसंघ की सुविशुद्ध शास्त्र व परंपरानुसारी सामाचारी अनुसार ही करने का है और उनके हस्तक सभी स्थान उपाश्रय आदि में आनेवाले सभी साधु-साध्वी को निम्नोक्त नियमों का पालन करना आवश्यक है। उसके विरुद्धजाहिर में और खानगी में आचरणा व प्ररूपणा करना मना है । 1. बारह पर्व तिथियों की क्षय वृद्धि करना मना है । 2. श्री विजय देवसूरसंघ सामाचारी में माननेवाले आचार्यों द्वारा संमेलन में किये गये ठराव अनुसार संवत्सरी महापर्व की आराधना करना । 3. नवांगी गुरुपूजन मत कराना । 4. पाक्षिक, चातुर्मासिक व संवत्सरी प्रतिक्रमण के अंत में संतिकरं स्तोत्र का पाठ करना । 1 5. जन्म संबंधी सुतक में सगोत्र जन्म हो, पत्नी अपने मायके में हो और वहाँ कोई जाता न हो तो 12 दिन प्रभुपूजा मत करना । और साधु-साध्वी को आहार पानी वहोराना मत । सामायिक व प्रतिक्रमण में सूत्र जोर से मत बोलना सुतकवाली स्त्री को व बालक को स्पर्श करते हो तो 42 दिन प्रभुपूजा आदि मत करना । 6. मरण के सुतक में सगोत्र हो तो 12 दिन, सगोत्र न हो और मृतक का स्पर्श किया हो तो 3 दिन और परंपरित स्पर्श हुआ हो तो 24 घंटे तक पूजा मत करना, सामायिक प्रतिक्रमण में सूत्र जोर से मत बोलना | मृत्यु बारह दिन बाद ही अंतराय कर्म की पूजा, भावयात्रा, पूजन आदि कराना 7. सूर्यग्रहण या चंद्रग्रहण के वख्त देरासर मांगलिक रखना । 8. गुरुपूजन का द्रव्य गुरु वैयावच्च में ले जाना । 9. चातुर्मास में सिद्धाचल शत्रुंजय की यात्रा मत करना और करने की प्ररूपणा भी मत करना । भवदीय मेनेजिंग ट्रस्टी श्री श्री शंखेश्वरपार्श्वनाथ जैन देरासर पिढी, दौलतनगर, बोरीवली (पूर्व), बम्बई - 400066Page Navigation
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