Book Title: Devchandraji krut Chovishi Balavbodh
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 15
________________ छ जितस्तवन १३ के एहवीस्यादवादमयीजे च्यात्मानी गुणपर्यायरूपसत्तावे तेनारसी कहे तारसीयाबो एटलेस्यादवादमा आत्मसत्ताते हेनानोगीवो तथाच्यम लकहेतांकर्ममलरहितो अखंम के हतां किवारेखमनपामो अनुपक हेतां जेहन मानथ एवोप्रनुदेखी नेमाहरेलानथयो ॥ ६ ॥ आरोपितसुखभ्रमटल्यारे ॥ नास्यो व्याबाध ॥ समरयोअनिलाषीपणोरे ॥ करतासाधनसाध ॥ अ० ॥ ७ ॥ अर्थ || एहवानुजी यात्मानंदनोगी आत्मस्वरूपरम तत्वविला सी जोने माहरेानादिकालनो इंडियमुखनेविषे जेसुखनोनासन ते आरोपित सुखञ्चमहतों तेटल्यो अनेअव्याबाध आत्मीकच्यानंदसुख तेनास्यो जिहां विषयसुखउपर सुखबुद्धिहती तिहां सुद्दिविषयसुख नो अभिलाषहतो ते हवेतो सर्व विषटयरहीत अव्याबाधसुखी श्रीअनु जीदीठा तेथतेनव्यजीव नेपण सुखतेाव्याबाध एहवो निरधारथयो ति वारेच्अभिलाषपण अव्याबाधसुखनोथयो माटेच्या निलाषी पण समरयो स्वरुपानुयायीथयो एटला सुदिविषयसुखने अभिलाषे आत्माविषय सुखनोकर्ताहतो ते जिवारेएहने अव्याबाधसुखनो अभिलाषथयो ते वारे कर्तापण अव्याबाध सुखनोथयो एटले कर्तापोसमस्यो जे जेहवा कार्टानोकर्ताथाय तेसाधनपण तेहवाजमेल वे असाध्यप हिजो एटले आज सुधि साध्य विषयसुखनोहतो तेथ साधनपण वि षयसुखनामेलवतोहतो हवेनुश्री अजितनाथ निर्विकारीदीता तिवारे तेच्यव्याबाधसुखसाध्यथयो एटले साध्यसाधनसमरयो ॥ इति० ॥ ७ ॥ ग्राहकता स्वामीत्वतारे || व्यापक नोक्ता नाव || कारणताकारज दिशारे ॥ सक लग्रहयुं निजनाव ॥ ० ॥ ८ ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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