Book Title: Devchandraji krut Chovishi Balavbodh
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 14
________________ देचोम्बा नावलोकनेन एसर्वदस्यमानतेसुखनथी जेकांइएसंसारमांहे स्त्रकचंदन गनासंयोगथानपना जेसुखतेसर्वदुःखजने विषयनाउछकताथी उपनीजे अति तेहनोएप्रतिकार एटलेदुःखतेनेज तत्वनाअजाणपणाथी सुखदुः खरूपदेवेहेच्या पणजातेएकजदुःखरूपोंगाटाथाकत्सुक्यमात्रमवसाद यतिप्रतिष्ठा क्लिनातिलब्धपरिपालनरत्तिरेवानातिश्रमापगमनाययथाश्र माटयाराज्यंखहस्तधृतदंममिवातपत्र।।१।जेपुण्यफल तसर्व तत्वोःखरू पनक्तंच॥ विशटासुहंउःखं॥चियदुःखपमिआर तिगच्च॥तंसुहमुवया रान ॥ नउयारोविणातचं ॥१॥विषयसुखतेतत्वथीःखजबे जिमरोगीने काथ पानबेदन दंननादि चिकित्शानीपरें हितनास पणःखपणोतो मात्रउपचारेसुखनासे अनेजेउपचारतेतथ्थपरमार्थिकसुखनहीसुखते मुक्तात्माने निरूपचरितखानाविक निःप्रतीकाररूप आत्मीकानंद तेजसुख तथासातानोनदटो तेपणःख असातानोउदटो तेपणःख का रणसातातेकर्म अनेकर्मनोविपाकतेगुणरोधक खगुणनोरोधतेहने सु खकोणकहे नक्तंच॥सायासायंरूखं सबिरहंम्मियसुहंजन तेणं देहंदि टासुःखं सुख्खंदेहेंदीटानावो ॥ इति॥१॥ तेमाटेसंसारसर्वखरूप ने अनेसर्वपरनावनासंगथी रहित वनाविकजेआनंद तेनेपरमानंदक होटो तेपरमानंद श्रीअजितनाथनोस्वरूप जिवादीषमपव्य तेमध्येपं चास्तिकायते परमार्थेषव्य तथाबवोकालते नपचारपव्य एचर्चावि शेषावश्यक तथाधर्मसंग्रहणी मध्येथीजोवी तेमध्येएकएकपच्यनेविषे अनंतागुण अनंतापाटाने तेअनेकताजाणवी अनेएकवव्यनेविषे एकसमये स्यान्नित्यं स्यात्मन्नित्यं स्यात्एकं स्यात्यनेकं स्यात्या स्ति स्यात्नास्ति स्यात् निलं स्यात्अभिन्न स्यात्वक्तव्यं स्यात्मवक्तव्यं एसर्वनावसमकाले वर्ततापामीर एटलाधर्मसमकालेजेमाहवरते ते धर्मनाअनंत अत्तिनेस्याशावादकहिथें ॥ स्यातइतिपदंअनेकांतोद्योत Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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