Book Title: Devchandraji krut Chovishi Balavbodh
Author(s):
Publisher: ZZZ Unknown
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अजितस्तवन
एहवापरमातमपनुरे ॥ परमानंदस्वरुप॥ स्याशदसत्तारसीरे ॥ अमलअखंमअनूपाणि॥६॥
अर्थ ॥ हवेजेनिमित्तपामीने उपादानसमरे पलटणपामे तेरीतकहे ने अथवाउनुपरमात्मा तेहनोस्वरूपक आत्मासर्वत्रणप्रकारना ए क बहिरात्मा बीजोअंतरात्मा बीजोपरमात्मा तिहांजेशरीरादिक उदैक भावकर्मजनित ने आत्मपणेगणे तेबहिरात्माकहिए अनेजेशरीरादिक न दैकनावथी आत्माअसंख्यात प्रदेशी चेतनालदण झानादिअनंतगुण पर्याटासहित अरूपानिन एटलेआत्माअरूपी शरीररूपी आत्मासह जयकृतिम शरीरसंटोगीकृतिम तेमाटेकर्मजोगे शरीरादिमध्येरझो पण भिन्नजे एहवूनेदझानवंत समकितगुणवाणाथी मामीवीणमोहचर्मसम टापर्यंत अंतरात्माजाणवो तथाज्ञानावरणी दर्शनावरणी मोहनी अंतराय एचारकर्मदयगयां केवलझानीसंयोगी तथाअयोगीकेवली तथाअष्ट कर्ममुक्त सिछात्मा तेपरमात्माजाणवो एटलेश्रीअजितनाथ अरिहंतएवं नूतनये परमात्मा अनुबे सर्वसिझवस्तुगते पोतानागुणपर्यायरूप संपदा ना पनु कोईअव्यअन्यव्यनोस्वामीहोएजनही ज्यांसुधिजेषव्यना चिं तनमांहें परपव्यनो स्वामीपणोडे त्यांसुहितेषव्यसुधनहिं तेमाटे श्रीय जितअरिहंत पोतानास्वनावनाउनु अनेन त्तमजीवपोताने कर्मवसप मया मोहमुग्याजाणी पोतानेरंकसमानगणे अनेअमोही स्वाधीनथ दातेहने अनुकहे अनेअमोहीनेअवलंब्या पोतेखसंपदानाधणथाय माटे जेहनाकारणपणाथ पोतानुप्रनुत्वपणोपांमाएं तेहनेअनुकहीटोंस्तव दो जगत्रमांपुजलनांसंयोगे जेसुखकहेवाटा तेतोआरोपमात्र एटले जातेसुखनथा।उक्तंच विशेषावश्यक॥जतोच्चियापच्चखं सोम्मसुहनकि उःखमेवेदं तपमियारविनत्तंतो पुन फलतिरूखंति॥॥हेसोम्यप्रनासज्ञा
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