Book Title: Devchandraji krut Chovishi Balavbodh
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 11
________________ अजितस्तवन पकार्यनीपजे पणकारणसर्व मिल्या अनेकर्ता जे आत्मातेजो तेमप योगसाधननु व्यापारनकरेतो कार्यनीपजेनही केमकेअरिहंतादिकना निमित्तपामीनेपणअनेकजीव आत्मासाध्यावलंबी तथासाधनपरणति थयांविना मोद कार्यनिपजाव्याविनां हजीसंसारमानमतादीसेजे तेमाटे कर्ताजेआत्मा तेजो मादसाधनरूप पटोगकहतांव्यापारकरे. तोसिछता रूपकार्यनिपजे ॥ इतिक्तिीयगाथार्थः ॥ २ ॥ कार्यसिद्धिकरतावसुरे॥ लहिकारण संयोग ॥ निजपदकारकपनमल्या रे॥ होएनिमित्तहनोग॥१०॥३॥ अर्थ।माटेकार्यसिघतानीनिष्पति तेक नहाथ जेमदंमरूपकारणतेने जोकर्ताघटरूपकार्य करवानेश्वर्तावेतो घटरूपकार्यकरे अनेतेजदंम जो घटध्वंसनेप्रवर्तीवेतो घटध्वंसकरे तेमाटेनिमित्तनीप्रतिते कर्ताजो कार्यकरवाने प्रवर्तीवेतोकार्यकरे माटेकार्यनीसिझी तेकर्तानेहाथडे पणकारणनिमित्तादिक तेनोसंटोगभिल्यांकार्यनीपजे एपछति माटे कोईसंसारीआत्मा निजकहेतांपोतानो आत्मीकपद परमानंदमहोदटारूप तेहनोकारक कहेतां करवावंत तेनेमोदनापुष्टकारण अनुजी श्रीअरिहंत मिल्यांथकां अवस्यनि मत्तनोभोगथाय एटलेजेजीवसंसारथी उनग्यो मोहाभिलाषीथयो तेमोदनानिमित्त श्रीतिर्थकरदेवपामीने हर्षनोनो गभवादनपामे वणुविलासनपजेकार्याअर्थी कारणनी पूष्टतावां एनी ति ॥ ३ ॥ इतित्रितीयगाथार्थ ॥ अजकुलगतकेशरीलहेरे ॥ निजपदसिं दनिहाल ॥ तिमप्रनुनक्तं नविलहेरे ॥ आतमसक्तिसंनाल ॥०॥४॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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