Book Title: Dashashrutskandh Sutra Author(s): Ashok Kumar Singh Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf View full book textPage 3
________________ 'छेदसूत्र' कहा गया है वे प्रायश्चित्त सूत्र हैं। आचार्य देवेन्द्रमुनि का अभिमत है कि श्रमणों के पाँच चारित्रों- १. सामायिक, २. छेदोपस्थापनीय ३. परिहारविशुद्धि ४ सूक्ष्मसम्पराय और ५. यथाख्यात में से अन्तिम तीन चारित्र वर्तमान में विच्छिन्न हो गये हैं । सामायिक चारित्र स्वल्पकालीन होता है, छेदोपस्थापनीय चारित्र ही जीवनपर्यन्त रहता है। प्रायश्चित्त का संबंध भी इसी चारित्र से है। संभवत: इसी चारित्र को लक्ष्य में रखकर प्रायश्चित्त सूत्रों को छेदसूत्र की संज्ञा दी गई हो । आचार्य ने दूसरी संभावना प्रस्तुत करते हुए कहा कि आवश्यकवृत्ति (मलयगिरि) में छेदसूत्रों के लिए पद विभाग, समाचारी शब्द का प्रयोग हुआ है। पद विभाग और छेद- ये दोनों शब्द समान अर्थ को अभिव्यक्त करते हैं। संभवत: इसी दृष्टि से छेदसूत्र नाम रखा गया हो क्योंकि छेदसूत्रों में एक सूत्र का दूसरे सूत्र से संबंध नहीं है, सभी सूत्र स्वतंत्र हैं। उनकी व्याख्या भी छेद दृष्टि से या विभाग दृष्टि से की जाती है। उनके मत में तीसरी संभावना यह हो सकती है कि दशाश्रुतस्कन्ध. बृहत्कल्प और व्यवहार नौवें प्रत्याख्यान पूर्व से उद्धृत किये गये हैं, उससे छिन्न अर्थात् पृथक् करने से उन्हें छेदसूत्र की संज्ञा दी गई हो। छेदसूत्रों की संख्या पंचकल्प के विलुप्त होने के पश्चात् जीतकल्प छठे छेदसूत्र के रूप में समाविष्ट कर लिया गया। कापड़िया" का अभिमत है कि यद्यपि वे पंचकल्प के स्वतंत्र ग्रन्थ के रूप में परिगणित किये जाने की अथवा इसके विलुप्त होने की वास्तविक तिथि बताने की स्थिति में नहीं है, परंतु जैन ग्रन्थावली से ज्ञात होता है कि संवत् १६१२ तक इसकी पाण्डुलिपि उपलब्ध थी। * प्रो. विण्टरनित्ज" के अनुसार छ: छेदसूत्रों के नाम इस प्रकार हैकल्प, व्यवहार, निशीथ, पिण्डनिर्युक्ति, ओघनियुक्ति और महानिशीथ । कालिकसूत्र के रूप में उल्लिखित दशा, कल्प, व्यवहार, निशीथ और महानिशीथ इन पाँच छेदसूत्रों की सूचि यह इंगित करती है कि आरंभ में छेटसूत्रों की संख्या पाँच ही थी। छेदसूत्रों की सामान्य विषयवस्तु छेदसूत्रों का सामान्य वर्ण्य विषय है- साधक के साधनामय जीवन में उत्पन्न होने वाले दोषों को जानकर उनसे दूर रहना और दोष उत्पन्न होने पर उसका परिमार्जन करना । इस दृष्टि से छेदसूत्रों के विषय को चार विभागों में वर्गीकृत किया गया है- १. उत्सर्ग मार्ग २. अपवाद मार्ग ३. दोष सेवन ४. प्रायश्चित विधान । प्रथम, साधु समाचारी के ऐसे नियम जिन्हें बिना किसी हीनाधिक के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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