Book Title: Dashashrutskandh Sutra
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf

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Page 12
________________ USHALA minatio n 1402. * जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेषाङ्क १३-१४.उपकारी पर अपंकार करना। १५. रक्षक होकर भक्षक का कार्य करना। १६-१७.अनेक के रक्षक, नेता या स्वामी आदि को मारना। १८. दीक्षार्थी या दीक्षित को संयम से न्युत करना। १९. तीर्थकरों की निन्दा करना। २०. मोक्षमार्ग की द्वेषपूर्वक निन्दा कर भव्य जीवों का मार्ग भ्रष्ट करना। २१-२२. उपकारी आचार्य, उपाध्याय की अवहेलना करना, उनका आदर, सेवा एवं भक्ति न करना। २३-२४. बहुश्रुत या तपस्वी न होते हुए भी स्वयं को बहुश्रुत या तपस्वी कहना। २५. कलुषित भावों के कारण समर्थ होते हुए भी सेवा नहीं करना । २६. संघ में भेद उत्पन्न करना। २७. जादू-टोना आदि करना। २८. कामभोगों में अत्यधिक आसक्ति एवं अभिलाषा रखना। २९. देवों की शक्ति का अपलाप करना, उनको निन्दा करना। ३०. देवी-देवता के नाम से झूठा ढोंग करना। अध्यवसाओं की तीव्रता या क्रूरता के होने से इन प्रवृत्तियों द्वारा महामोहनीय कर्म का बंध होता है। दशमदशा संयम-तप की साधना रूप सम्पत्ति को भौतिक लालसाओं की उत्कटता के कारण आगामी भव में ऐच्छिक सुख या अवस्था प्राप्त करने के लिए दांव पर लगा देना 'निदान' कहा जाता है। ऐसा करने से यदि संयम-तप की पूंजी अधिक हो तो निदान करना फलीभूत हो जाता है किन्तु उसका परिणाम हानिकर होता है। दूसरे शब्दों में रागद्वेषात्मक निदानों के कारण निदान फल के साथ मिथ्यात्व, नरकादि दुर्गति की प्राप्ति होती है और धर्मभाव के निटानों से मोक्षप्राप्ति में बाधा होती है। अत: निदान कर्म त्याज्य है। वस्तुत: दशम अध्ययन का नाम आयति स्थान है। इसमें विभिन्न निदानों का वर्णन है। निदान का अर्थ है- मोह के प्रभाव से कामादि इच्छाओं की उत्पत्ति के कारण होने वाला इच्छापूर्तिमूलक संकल्प। यह संकल्प विशेष ही निदान है। आयति का अर्थ जन्म या जाति है। निदान, जन्म का कारण होने से आयति स्थान माना गया है। आयति अर्थात् आय+ति, आय का अर्थ लाभ है। अत: जिस निदान से जन्म-मरण का लाभ होता है उसका नाम आयति है। दशाश्रुत में वर्णित निदान इस प्रकार हैं१. निर्ग्रन्थ द्वारा पुरुष भोगों का निदान। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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