Book Title: Dasakaliya Suttam
Author(s): Punyavijay
Publisher: Prakrut Granth Parishad
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णिज
पढम
तिचु- णिजुयं दसकालियसुत्तं
फियज्झयणं
॥५॥
जत्तो ति गतं । जावन्ति दारं, तं निदिसति-दुमपुफियादीणि सभिक्खुकावसाणाणि दस रतिवक्कचूलियातो चूलत्तरचूलातो ॥ जावंति गतं । जह ठविय ति दारं, एत्थ इमाओ निज्जुत्तिगाहाओ
पढमे धम्मपसंसा सो य इहेव जिणसासणम्मि त्ति १। वितिए धितीए सक्का काउं जे एस धम्मो त्ति २॥८॥ ततिए आयारकहा उखडिया ३ आयसंजमोवातो। तह जीवसंजमो वि य होति चउत्थम्मि अज्झयणे ४॥९॥ भिक्खविसोधी तव-संजमस्स गुणकारिया तु पंचमए ५। छठे आयारकहा महती जोग्गा महयणस्स ६॥१०॥ वयणविभत्ती पुण सत्तमम्मि ७ पणिहाणमट्ठमे भणियं ८। णवमे विणओ९दसमे समाणियं एस भिक्खु त्ति १०॥११॥ दो अज्झयणा चूलिय विसीययंते थिरीकरणमेगं १।
बितिए विवित्तचरिया असीयणगुणातिरेगफला २॥१२॥ पढमे धम्मपसंसा। पंच वि संहियाणुक्कमेण उच्चारेत्ता अणुपुव्वेणं अत्थो विवरिजति–णवधम्मस्स असम्मोहत्थं पढमज्झयणे धम्मो पसंसिज्जति, सो य इहेव जिणसासणे एयं णियमिजति १ । बितिए पहाणं एवं धम्मकारणं ति घितिपरूवणं, कधं ? "जस्स धिती तस्स तवो.” [
]२॥८॥ १°णायरे वी० ॥२ “जस्स धिती तस्स तबो जस्स तवो तस्स सोग्गई सुलहा । जे अधितिमंतपुरिसा तवो वि खलु दुल्लहो तेसिं ॥" | इति पूर्णा गाथा वृद्धविवरणे ॥
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