Book Title: Dasakaliya Suttam
Author(s): Punyavijay
Publisher: Prakrut Granth Parishad
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आयारे fधति करण त्ति ततियज्झयणं खुड्डियायारो भणितो ३ । आयारो पुण छक्कायदया पंच महव्वयाणि [त्ति ] खुड्डियायाराणंतरं धम्मपण्णत्ती ४ ॥ ९ ॥
तद धम्मेधितिमतो आयारट्ठियस्स छक्कायदयापरस्स णासरीरो धम्मो भवति, पहाणं च सरीरधारणं पिंडो त्ति पिंडेसणावसरो | अहवा छज्जीवणियाए पंच महव्वया भणिता ते मूलगुणा, उत्तरगुणा पिंडेसणा, कहाँ ? “पिंडस्स जा विसोधी ०" [ व्यव० भा० उ० ३ गा० २८९] अतो छज्जीवणिकायाऽणंतरं पिंडेसणा । छज्जीवणितोवदिट्ठसव्वमहव्वयसंरक्खणं ति वा तदणंतरं पिंडेसणा-पाणातिवातरक्खणं ताव “उदओलेण हत्थेणं दव्वीए भायणे० " [अ० ५ ० १ गा० ३३ ] एवमादि, मुसावादे “तवतेणे वतितेणे” [अ० ५ उ० २ गा० ४४ ], [अदिण्णादाणे ] " कवाडं णो पणोलेज्जा ओग्गहं से अजातिया ।" [अ० ५ उ० १ गा० १८ ], मेहुणे "ण चरेज्ज वेससामंते" [अ० ५ ० १ गा० ९ ], पंचमे " अमुच्छितो भोयणम्मी” [अ० ५ उ०२ गा० २५ ] मुच्छा परिग्गहो सो निवारिज्जति ५ । छट्टे आयारकहा पुव्वेण अभिसंबज्झते - गोयरग्गगयमणेसणं पडिसेहितो कोति आयारं पुच्छेज्जा तत्थ “गोयरग्ग| पविट्ठो उ न निसीएज्ज कत्थति । कथं वा ण पबंधेज्ज” [अ० ५०२ गा० ८] त्तिण कहेति, भणति तु - जति अि गुरुसगासं एह ते सविसेसं कहयंति, ततो जायकोउहल्ला एंति “रायाणो रायमचा य०" [अ० ६ गा० २] सिलोगो ६ ॥ १० ॥
तदणु सव्वदोस परिसुद्धं गुरवो वयंति वक्कमिति वक्कसुद्धीए अवसरो ७ । आयारपणिहीसंबंधो१५ गुरवो अक्खेवणादिकहाकुसला 'आयारहरणीयो य लोगो' त्ति रायातीए आमंतेउं भणति - सोम्ममुहा ! “आयारपणिहिं लद्धुं ० " [अ० ८गा० १] सिलोगो ८ । णवमज्झयणसंबंधो - तेसिं कोति सवणाणंतरमायारं पडिवज्जेज्जा तस्स गुरुसमाराहणत्थमुपदिसति विणयसमाहिं, अवि य - “विणतो सासणे मूलं०” [ आव० नि० गा० १२२८ ] ९ । सभिक्खुयं न केवलमणंतरेण णवहिं वि अज्झयणेहिं अभिसंबज्झति, कहं ? जो धम्मे
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