Book Title: Dasakaliya Suttam
Author(s): Punyavijay
Publisher: Prakrut Granth Parishad
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णिञ्जतिचु
ण्णिजुयं १५ दसकालियसुत्तं
116 11
२० |
महीरुहा ८ | सुतप्रियभवनं वच्छा, पुत्ता इव रक्खिति वच्छा ९ । रुप्पंति रोपणीया वा रोपका १० । " भजो भंगे" भज्जंतीति भंजका ११ ॥ १४ ॥ दुमेत्ति गतं ।
पढमं दुमपु
पुप्फे ति दारं, तंपि चतुव्विहं जहा दुमो तहेव । देव्वपुष्फेण अधिकारो । ऐगट्टियाणि से पुप्फं फुलं १५ प्फिय| कुसुमं सुमणं एवमादीणि । जहा रुक्खस्स तहा [पुप्फस्स ] सणिरुत्तेसु भणिएसु इदाणिं भिणपयसमसणं समासोज्झयणं एगीभावगमणं सो कीरति - इह छडीतप्पुरिसो, दुमस्स पुप्फं दुमपुष्पं, दुमपुप्फोवमाणपहाणत्थमज्झयणं, गहादिवि| हितः [ पा० ४. २. १३८ ] ठप्रत्ययः, दुमपुष्फियं ॥ तस्स इमे अत्थाहिगारा
दुमपुष्कियं च १ आहारएसणा २ गोयरे ३ तया ४ उंछे ५ ।
मेस ६ जलोया ७ सप्पे ८ वण ९ ऋख १० उसु ११ पुत्त १२ गोलु १३ दए १४ ॥ १५ ॥ दुमपुफियं च आहारएसणा० गाधा । दुमपुष्कियं ति वा आहारेसने त्ति वा एवं पयविभागो । एतेहिं ओवम्मं ति एते अज्झयणत्था । जहा दुमस्स पुष्फेहिंतो अकयमकारियं भमरो रसं आहारेति, ण य | पुप्फस्स विणासो किलामो वा भवति, एवं सव्वेसणासुद्धं गिहीण पीलं अकरेंतो साधू आहारं गेहति १ ।
आहारसण त्ति गवेसण - गहण - घासेसणासु जतितव्वं २ |
१ "रुत्ति पिथिवी, तीय जायंति त्ति रुजगा" इति वृद्धविवरणे ॥ २ भावपुदकेण मूलादर्श। “दव्यपुप्फेण अहिगारो” इति वृद्ध विवरणे ॥ ३ " पुप्फा य कुसुमा चेव फुला य पसवा विय। सुमणा चेव सुहुमा य सुहुमकाइयाणि य ॥ १ ॥” इति पुष्पैकार्थिकानि ॥ ४ भिण्णपयपसमणं मूलादर्श ॥ ५ दुमपुष्फिया य आहार सर्वासु निर्मुक्तिप्रतिषु, हरिभद्रपादैरयमेव पाठः खीकृतोऽस्ति ॥ ६ उसु गोल पुत्तुदर इति पाठः सर्वासु निर्युक्ति प्रतिघूपलभ्यते, एनमेत्र पाठमनुसृत्य श्रीहरिभद्राचार्यैर्व्याख्या कृताऽस्ति । | चूर्णि वृद्धविवरणकृत्सम्मतस्तु पाठ उपरि उल्लिखित एव, किञ्च नोपलभ्यतेऽयं पाठः कुत्राप्यादर्श इति ॥
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