Book Title: Darshan aur Anekantavada
Author(s): Hansraj Sharma
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 8
________________ [ ४ ] संयुक्त प्रान्त के प्रसिद्ध शहर आगरा के अपने 'श्री आत्मानन्द जैन पुस्तक प्रचारक मण्डल' की ओर से पं० हंसराज जी कृत 'दर्शन और अनेकान्तवाद' नामक पुस्तक मुझे सम्मति देने के लिये भेजी गई है। समाज के धुरंधर विद्वानों की तुलना में यद्यपि मैं अपना स्थान बहुत ही निम्नकोटि का समझता हूँ तो भी इस आदेश को गौरव समझ कर दो अक्षर लिखने का साहस करता हूँ। आज कल क्या हिंदी क्या जैन साहित्य जिस ओर भी देखा जाय नवीन पुस्तकों की संख्या दिनों दिन बढ़ती ही जाती है परन्तु आज मेरे सम्मुख जो पुस्तक उपस्थित है वह बड़े ही महत्व की है। ऐसा गम्भीर गवेषणापूर्ण तुलनात्मक दर्शन की पुस्तक की विशेष कमी थी। इसमें जितने जैन और जैनेतर विद्वानों की पुस्तकों के और उन लोगों के मत के विषय में अनेकान्तवाद दृष्टि से ग्रन्थकार ने जो विवेचन किया है वह ग्रन्थ के प्रारम्भ में सूची से ही पाठकों को अच्छी तरह उपलब्ध होगा कि हमारे पं० हंसराज जी की योग्यता ऐसे जटिल और कठिन विषय में कितनी उच्च है। ग्रन्थ के प्रासंगिक विषय की उपयोगिता पर प्रकाशक महाशय अपने निवेदन में स्पष्ट किये हैं कि 'यह पुस्तक अनेकान्तवाद के तात्विक, ऐतिहासिक व तुलनात्मक स्वरूप का निरूपण करने के लिये विशिष्ट विद्वानों को एक अनुपम प्रमाण संग्रह का काम देगी। लिखना बाहुल्य है कि अपने जैन सिद्धान्त का अनेकान्तवाद एक बड़ा ही कठिन और विचारने योग्य विषय है। बड़े २ विद्वान् और हानियों ने इस विषय की गंभीरता और जटलिता एक स्वर से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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