Book Title: Darshan aur Anekantavada Author(s): Hansraj Sharma Publisher: Atmanand Jain Sabha View full book textPage 7
________________ [ ३ ] 'अनेकान्तवाद' यह एक जैन तत्त्वज्ञान का मूल सिद्धान्त है और यह पुस्तक भी जैन संस्था की ओर से प्रसिद्ध होती है। इसलिए पुस्तक के नाम मात्र से बहुत लोग ऐसा समझ सकते हैं कि इसमें लिखा हुआ जैनों के काम का है, दूसरों के काम का नहीं। परन्तु ऐसे समझने वालों को मैं कहना चाहता हूँ कि यह पुस्तक जैन, जैनेतर सभी ज्ञान पिपासुओं के लिये उपादेय है। इसके दो कारण हैं: (क ) ज्ञान यह किसी की खास सम्पत्ति नहीं है और किसी स्थान या सम्प्रदायके सम्बन्धसे वह त्याज्य नहीं ठहरता, अगर असल में वह सत्य हो । (ख) 'अनेकान्तवाद' की विचारणा जैन दर्शन के अलावा वैदिकदर्शनों में भी कितनी है और किस प्रकार है इसका परिचय प्रसिद्ध २ वैदिक ग्रन्थों में से प्रस्तुत पुस्तक में कराया गया है। इसलिए जैन विद्वानों को जैनेतर ग्रन्थों से और जैनेतर विद्वानों को जैन ग्रंथों से अनेकान्तवाद के विषय में जानकारी प्राप्त करने के लिये यह पुस्तक पहला ही साधन है। ___ उक्त दो कारणों से सच्चे तत्व जिज्ञासु के लिये प्रस्तुत पुस्तक बड़े महत्व की है। संशोधक विद्वानों के लिये तो यह पुस्तक प्रमाणों का संग्रह होने से खास काम की है। कीमत कुछ भी नहीं है। सुखलाल ( गुजरात पुरातत्त्व मंदिर, अहमदाबाद) For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.orgPage Navigation
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