Book Title: Darshan aur Anekantavada Author(s): Hansraj Sharma Publisher: Atmanand Jain Sabha View full book textPage 6
________________ [ २ ] पण्डित हंसराज जी शास्त्री वैदिक, पौराणिक, ऐतिहासिक एवं दार्शनिक शास्त्रों के प्रकाण्ड विद्वान् हैं। यही नहीं, आप जैन धर्म के भो असाधारण पण्डित हैं। आपने कई पुस्तके लिखी हैं जो आपकी विद्वता का अच्छा परिचय दे रही हैं । आपकी नवीन पुस्तक अनेकान्तवाद विषयक है । इस विषय पर बहुत विद्वानों ने लिखा है पर जो कुछ पण्डित जी ने लिखा है वह अपूर्व है। आपने इस कठिन विषय को बड़ी युक्तियों से समझाया है। इस सिद्धान्त को पाठक के हृद्य-पटल पर गाढ़ अंकित करने के उद्देश्य से एक बात को कई कई बार कहा है। यह पुनिरुक्ति दोष नहीं है बल्कि जिसे वेदान्त वाले अभ्यास कहते हैं वह है। पण्डित जी की हिन्दी बड़ी शुद्ध परमार्जित और बोधगम्य है विषय कठिन और गूढ़ है पर प्रतिपादन की शैली परम स्तुत्य है। हिन्दू दर्शन शास्त्रोको तुलनात्मक दृष्टि से देखना एक प्रकाण्ड विद्वान् का ही काम है। ऐसे वैसे पढ़े लिखे का नहीं । पण्डित जी इस विषय के अच्छे जानकार हैं। अन्य मतावलम्बियों की पक्षपात हटाने के लिये पण्डित जी ने जो आयोजना की है वह प्रशंसनीय है। इस प्रकार का ग्रन्थ अभी तक देखने में नहीं आया। यह अपने ढंग का अद्वितीय और अनूठा ग्रन्थ है आशा है कि हिन्दी संसार इसका उचित सत्कार करेगा। इसकी एक एक प्रति सभी घरों में होनी चाहिये । अस्तु । धौलपुर । कन्नोमल १० जुलाई १६२८) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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