Book Title: Darshan aur Anekantavada
Author(s): Hansraj Sharma
Publisher: Atmanand Jain Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 4
________________ विद्वानों की सम्मतियां [१] * वन्दे श्रीवीर मानन्दम् हमने पं० श्री हंसराज शास्त्री का निर्माण किया " मध्यस्थवादमाला” का तीसरा पुष्प दर्शन और अनेकांतवाद नाम पुस्तक श्राद्योपान्त देखा । इसमें शक नहीं कि यह पुस्तक विद्वानों के लिये जिसमें भी खास करके जैनेतर विद्वानों के लिये, मार्ग दर्शक हो जायगा । क्योंकि इस पुस्तक का खास विषय स्याद्वाद अनेकान्तवाद का है। शास्त्रों में जहां कहीं यह विषय आ जाता है वहां प्रायः अच्छे अच्छे विद्वान् भी अपरिचित होने के कारण विचार में पड़ जाते हैं, या तो मनः कल्पित यद्वा तद्वा समझकर वस्तु के परमार्थ से वञ्चित रह जाते हैं ? जैन विद्वान् तो प्रायः स्याद्वाद को जानते ही हैं, इसलिए उनके निकट इस पुस्तक की इतनी ही उपादेयता समझी जाती है कि जैनदर्शन के सिवाय अन्य दर्शनों में भी स्याद्वाद को कितना आदर मिल रहा है और अन्यान्य दर्शनकारों ने इसका किस किस रूप में अनुकरण किया है, परन्तु जैनेतर विद्वानों को इस पुस्तक द्वारा एक तो जैन दर्शन के स्याद्वाद का स्पष्टतया बोध होगा और दूसरा उनके अपने अपने दर्शनकारों ने एक ही पदार्थ में विरुद्ध धर्मों का जिस रूप से प्रतिपादन किया है इसका सुचारु बोध होगा, इसलिए यह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 ... 236