Book Title: Chaturvinshatiprabandha
Author(s): Rajshekharsuri, Hiralal R Kapadia
Publisher: Harsiddhbhai Vajubhai Divetia

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Page 10
________________ किश्चित् प्रास्ताविकम् कथासाहित्यरसपिपासुभिः कणेहत्य निपीयताममन्दानन्दसन्दोहनिस्यन्दी रसनिवहः । अयं मदीयः परिश्रमः फलेग्रहितां नीयता नीतिनिपुणैर्विद्याविनोदिभिः सद्भिः। क्षम्यन्तां 'क्षमासन्ततिचारुचित्तै'निसर्गोपनिपाताश्छाअस्थिकानि स्खलनानि। उपेक्ष्यन्तामशुद्धयो मुद्रणयन्त्रसञ्जातास्तनियुक्तजनसमाचरिता वा मात्राऽनुस्खाराङ्कादिपतनपरावर्तनप्रभृतयः प्रतिभाप्रतिष्ठापुरस्कृतैः परीक्षकैरिति प्रार्थयति विबुधवृन्दारविन्दमकरन्देन्दिन्दरो हीरालालो मोहमयीनगर्या भूलेश्वरवीथ्या माघे सुदि सप्तम्यां २४५८तमे वीरसंवत्सरे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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