Book Title: Chattrish Bol Sangraha
Author(s): Agarchand Bherudan Sethia
Publisher: Agarchand Bherudan Sethia

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Page 3
________________ प्रस्तावना. या छत्रीश बोलना थोकडानुं पुस्तक विकानेर (राजपुताना) निवासी श्रेष्ठी अगरचंदजी भेरुदानजी तरफथी सर्वे सत्पात्रने सज्जनने भेट आपवा माटे छपाची प्रगट करवामां आव्यु छे. धर्मज्ञाननो फेलावो करयो ए महापुण्यन काम छे. श्रमणभगवंत श्रीमहावीरमधुए कहां छे के-"पढमनाणं तवो दया." ज्ञाननो प्रसार करी अज्ञानरुपी अंधकारनो नाश करवो ए काम मायावी जगतना जीवो माटें अति जरूरतुं छे. अधर्म अने धर्मनो भेद ज्ञानथी मालम पढे छे. धर्म ए अमूल्य चीज छे, तेनुं खरं वरुप समजवं मुश्कल छे. मनुष्यना शुष्क जीवनमा धर्म ए एक शीतळ चैतन्य छे. आत्मानी अनेक निराशाओमां धर्मज आशानो संचार करे छे. मृत्यु पछी पण जीवनने अव वन आपनार वस्तु धर्मज छ, धर्मनुं बळ अप्रत्यक्ष छे पण तेयी तेनो अस्वीकार करीशकायज नहि. जगता / जे प्रजा बनी छे ते सर्वे धर्मना जोसथीज बनी छे. हालमा धर्मनो अर्थ संकुचितहतिथी करवामां आवे छे ते ठीक नथी. वादविवादयी धर्मनु शान्तिप्रचारक मूळ स्वरूप नष्ट करी तेने विरोधवर्धक रूप आप_ योग्य नयी एना यथोचित उपयोगथी मनुष्य- कल्याणज थाय छे. जे हानि याय छ तेतीधर्मांधताथी याय छ, धर्मथी यती नथी. माटे वादविवाद के विरोधवर्धक के धौधता प्रदर्शक खंडनमंडन जेवू लखाण प्रगट करवानुं पसंद नहि करतां छत्रीश बोलना थोकडा जेषु राने मिय थइ पडे तेवूआ पुस्तक शेठश्री मोमुफे प्रगट करवान योग्य घायु जणाय छे. जुदा जुदा सूत्रमा के स्थळमा जुदा जुदा नोलनु छुटुं छुटुं ज्ञान मळी शके खलं पण ते शोधवामा पुष्कळ वखत जाय अने तेम छतां पण जोइए तेटली विगत एकठी यइ शके नहि तेथी आ प्रमाणे छत्रीश बोलनो संग्रहल || सागर रामस्या Bare

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