Book Title: Chandappahachariyam ni Rupkatha
Author(s):
Publisher: ZZ_Anusandhan
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तहाहि -
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किंच -
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इय जंपिरेसु तेसुं पयंपए आउपाल नरनाहो । जह दंसणमोहेण वि सयलमिणं साहियमहेसि ॥ १२३ ॥ इय जारिसया वाया दिज्जंते ओलया वि तारिसया । इय सयललोय-पयडं वयणं धरिऊ ण हियएसु ॥ १२४॥ नरयाउपालय-प्पमुहाणमसायाइणो महासुहडा । जिह विवक्खं मिलिउं गंतुं नरयाइ - पुहईसु ॥१२५॥ लोहेण केइ केइ वि एण संमाणिउं पुणो के वि । तह कुणह जह न तुब्भे कुटुंबिणोऽन्नत्थ वच्चति ॥ १२६ ॥ अह तस्स निवइणो इममाएसं घेत्तु उत्तिमंगेणं । मिलिडं सव्वे विहु ते निय-निय - नयरीसु वच्चति ॥१२७॥ ते विहु असायप्पमुहा सुहडा किल आउनिवइ - भाउसुया । वेयणियाइ - निवाण जेण इमे होंति अंगरुहा ॥ १२८ ॥
वेयणिय - निवस्स पिया अणुभूई तीए दोत्रि अंगरुहा । साय- असायऽभिहाणा परिणइ नामा उ नामपिया ॥ १२९ ॥ सिं उ सुभासुभ सद्द - रूव-रस-गंध-फासया तणया । गोय-पियाए उप्पत्तीए दो उच्चनीयसुया ॥१३०॥ वेयणियाईहिं य ते समप्पिया आउपाल - नरवइणो । तेण वि निय-पुत्ताएँ कया सहाया इमे सव्वे ॥ १३१ ॥ अस्साय-नीय - गोयासुहनाम- प्पमुह - सुहड - परियरिओ । नया उपाल - निवई रयणाइसु नियय-नयरीसु ॥ १३२ ॥ आउट्ठिईए चित्तं निच्चं पि करेइ तस्स लोगस्स । हडिपक्खेव सरिच्छा जमिमा अच्चंत दुल्लंघा ॥ १३३ ॥
रयणाए जहन्त्रेण वि वाससहस्साइं दस ठिई विहिया । सओ उ सागरमेगं तव्वासिलोगस्स ॥१३४॥ तिन्नेव सागराई उक्कोसेणं जहन्नओ एगँ । विहिया ठिई निवइणा तेणं सक्करपहपुरीए ॥१३५॥
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