Book Title: Chandappahachariyam ni Rupkatha
Author(s):
Publisher: ZZ_Anusandhan
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अविय
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सच्चिय जहन्नमच्चुयकप्पे उक्कोसओ उ बावीसं । इय कोसा उवरुवरि ठिई पुण जहन्ना ॥२२० ॥ ता जाव नवमगेवेज्जगंमि इगतीस अयर उक्कोसा । विजयाइसु वि जहन्नो इगतीसियराउ तेत्तीसं ॥२२१॥ सव्वविमाणे उण अजहन्नुकोसओ वि तेत्तीसं । एत्तो उण अहिययरं सक्कइ सक्को वि न विहेउं ॥ २२२॥ देवाउपाल वसुहाहिवेण एसा ठिई कया ताव | पयर्डेति नियय-सत्तिं तत्थ असायाइणो वि भडा ||२२३ देवनिकाएसु जओ चउसु बिदाइणो सुरो दसहा । जे के वि संति सुरभव संभवि असमाण- - सुहनिहिणो ॥ २२४॥ सिं वि असायसुडो दुहमसहं देइ जावजीवं पि । ईसाविसायपमुहेण मोहकडगेण जगतो ॥ २२५ ॥
परआणा - करणेणं कस्स वि कस्स वि य परिहव भरेण । कुपरियणं कस्स वि कस्स वि पररिद्धि-दंसणओ ॥२२६॥ कस्स वि च उणं दट्ठूण अत्थणो गब्भवासपडणं च। उप्पायइ दुहमसहं लद्धवयासो असाय- भडो ॥ २२७॥ नवसु वि गेवेज्जेसुं तियसा जे संति तेसिं पाएण । अहमिंदत्तेणं सुहमेवयस्स उदओ जणइ ॥ २२८ ॥ जत्थ पवेसो लब्भइ आणाए चारित्तधम्मरायस्स । देवाणुपुव्वि अभिहाणाए नवरं पओलीए ॥ २२९ ॥ मणुयाणुपुव्वि नामा बीय पओली वि एत्थ अत्थि परँ । तीए विणिग्गमो च्चिय न पवेसो हवइ कस्सा वि ॥ २३०॥ तह जइ वि के विमिच्छत्तमंतिवसवत्तिणो वि इह संति । तह विन तेसि पवेसो जइणपुरावास-विरहेण ॥२३१॥ चारितधम्म- नरवइ - आणं उवघेत्तु भावविरहे । वसिऊणं जइणपुरे पविसंति तहि इहरहा नो ॥२३२॥
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