Book Title: Chandappahachariyam ni Rupkatha
Author(s):
Publisher: ZZ_Anusandhan
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सो उण मिलियस्स वि मोहराय - सेन्नस्स धुवमिह अजोग्गा । ता दंसणमोहो परिचिंतइ धिसि विसममावडियं ॥९६॥ जं मह पुत्त्रेण इमे पक्खित्ता सिवपुरीए नेऊण | न य तत्थम्ह पवेसो अवालणिज्जा तओ एए ॥ ९७ ॥ इय आणि असंववहाराउ पुराउ पाणिणो इयरे । सिवगय-जिय-ठाणाई पिउणो आणाए पूरेमि ॥ ९८ ॥ जेण न मह चुल्लपिया रूसइ इय चिंतिरो य तह कुणइ । मुणिउं च वइयरमिमं आउयपालो वि चिंतेइ ॥९९॥ मह भाउ-सुओ सोहणमणुट्टए जं इमाई ठाणाई | न धरइ सुनाइं जणे खलेहिं अत्रत्थ नीएवि ॥१००॥ एत्थतरंमि दंसणमोहो सिरिआउराय - पासंमि । आगंतूणं सविणयमुल्लवइ कयंजली एवं ॥ १०१ ॥ सम्मत्तनामगो जो जाओ मह ताय नंदणो एसो ।
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अच्चत पडिणीओ आणं पि न अम्ह मन्नेइ ॥ १०२॥ अवगणइ पियामहमवि जम्हा अम्हाण सयलठाणाणि । उव्वासइ अणुकमसो मिलिउं पिसुणाणिमो दुट्ठो ॥१०३॥ तुम्हाणवि निरवेक्खो बलवंत-सुबोह - निवइ - आसत्तो । तणलवमिव अवगच्छइ अम्हे सव्वे वि सपरियणो ॥ १०४ ॥ एवं च निययकुलधूमकेडणो पिसुण-संग निहयस्स । तस्स कुपुत्तस्स वयं किं करिमो इय निवेएह ॥ १०५ ॥ केवलमम्ह जणं सो हरिडं जं जेण ठाणमिह सुन्नं । तत्थ असंववहारपुराओ अन्नं निवेसेो ॥ १०६ ॥ तंमि य जणो अणंतो वसइ जओ तेण थोव-जणगहणे । सिरिमोहमहीवइणो न किंचि वि अवरज्झिमो अम्हे ॥१०७॥ हरियं पि जं तरेमो तमवस्सं वालिऊण रक्खेमो । अन्नं पि किं पि सीसइ पत्थाव-समागयं तुम्ह ॥ १०८ ॥ नरयगइप्पमुहासु य पुरीसु जे निवइणो तए ठविया । नरयाउपाल - पमुहा पयंड- दंडा महासुहडा ॥१०९॥
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