Book Title: Chandappahachariyam ni Rupkatha
Author(s):
Publisher: ZZ_Anusandhan
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ते वावारेऊणं असाय-उदओ महाभडो बहुसो । रयणप्पमुहपुरीसु त्ति आइल्लासु लोगस्स ॥ १६४॥ छेयण-भेयण-वेयरणितरण - करवत्तफालणाईणि । तह तह करावए जह सुहलवमवि लहइ न जणो सो ॥१६५॥ अन्नोन्नुद्धीरियमवि खेत्तसहावुब्भवं च दुहमसहं । पss तहा जहा सो क्खणभवि न जणो सुही हवइ ॥ १६६ ॥ अग्गमगासु पुणो तिसु दुसहाई दुहाई होंति दो चेव । जम्हा परमाहम्मिय तियसाण न अत्थि तत्थ गई || १६७ || सत्तमपुरी पुणे जं तद्वाणकथं पि असुहमइघोरं । जं विसम - वज्ज - कंटय-मज्झे चिय तत्थ उप्पत्ती ॥१६८॥ एवं च तस्स तारिस असाय परिपीडियस्स लोगस्स । सुहवत्ताविन वट्टइ का पुण अन्नत्थ गमणकए ॥१६९|| नरयाउवाल- विरइय आउखए होज्ज अन्नहिँगमणं । लोगस्स तस्स किं पुण असाय - सुहडा तमणुजंति ॥ १७० ॥ नरतिरिगड़-नयरीसुं दोसुं चिय निज्जइ इमो जम्हा । सिरिनामराय - सुहडेहिं तेण तत्थ वि असायाई ॥ १७१ ॥ तिरियाउपालनिवई तत्तो तिरियगइ नियय - नयरीए । पडिबद्धेउं चोद्दससु ब्भूय - गामेसु गंतूण ॥ १७२ ॥ समगं असायनीयागोयासुहनामपमुह सुहडेहिं । एगिंदियाइपाडयपुढवीकायाइगेहेसु || १७३ || जे केइ संति लोया तेसिं चिंतइ भवट्ठिईकालं । कार्याकालं पिट्ठाणं सुन्नकरणत्थं ॥१७४॥ पुढवीकाय पुरट्ठिय-जणस्स बावीसई सहस्साइं । वासाण भवई कालो उक्कोसओ होइ ॥ १७५ ॥ आउक्काए सत्त उ तिन्नि सहस्साउ वाउकायंमि । दस वाससहस्सा उण पत्तेयतरूण उक्कोसो || १७६ || तेओक्काए राइंदियाणि तिन्नेव एवमेसा उ । एगिंदि भवठिई बारसवरिसाणि उ बिइंदीण ॥ १७७॥
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