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संपादकीय
जीवन से जुड़े दो तत्त्व हैं दृष्टि और दिशा जैसी होती है दृष्टि दैसी होती है सृष्टि यादृक् दृष्टिः तादृक् सृष्टिः बदले दृष्टि बदलेगी सृष्टि बदलेगी दिशा। व्यक्ति और विचार में आचार और व्यवहार में परिलक्षित परिवर्तन कारण है दृष्टि/दर्शन। जीवन के विकास और हास क अंधकार और प्रकाश का रहस्य है व्यक्ति की दृष्टि प्रभावित उससे मति/गति। महाप्रज्ञ कहते हैं - जो बाहर देखता है वह है भौतिक जो भीतर देखता है वह है आध्यात्मिक। झांका जिसने भीतर गहरे उतर कर मिला उसे विलक्षण बदल गया जीवन। पूर्ण समर्पण गतिमान् चरण त्याग के पथ पर स्पष्ट बन गया गंतव्य प्राप्त हुआ प्राप्तव्या धन्य हैं वे पवित्र आत्मन् । लब्ध अस्तित्व निखरा व्यक्तित्व जीवन उत्कर्ष बने आदर्श
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