Book Title: Chakkammuvaeso
Author(s): Madhusudan Modi
Publisher: Oriental Institute

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Page 14
________________ The colophon: [II3.B.1 अथ संवत्सरे नृपश्रीविक्रमादित्यराज्ये संवत् १५९२ वर्षे कार्तिकवदि ५ शनिवासरो पातिसाहि हमायुराज्यप्रवर्तमाने सीहनंदस्थाने ग. श्री विनयसंदरशिष्य मु. धर्मसुंदरेण पुस्तकं लिषितं ॥ १॥ ॥ छ । शुभं भूयात् ॥ यादृशं पुस्तके दृष्ट्वा तादृशं लिषितं मया। यदि शुद्धमशुध्दं वा । मम दोषो न दीयते ॥१॥ संकडियचरणं उग्गगीवा अहोमुहा दिट्ठी । जं सुह पावइ लेहो तं सुह पावइ त्तु (?) ह दुजणउ ॥ २॥ छ ॥ शुभं भूया ॥ श्री॥ १॥ मांगलं भवतु ॥ ग्रंथस्य शंखा ॥ ३८०० ____Leaves 113; size of a leaf : 9 in x 5.5 in. with coloured decorated margins above, below and on the sides. Besides the above three Mss. which I have utilised for the constitution of the text, there are two more Mss. in Jaipur, Āmera Bhandāra which I have not used for the text. I give below the description of these two Mss. as given by प्रशस्तिसंग्रह of Amera Sastra Bhandara: (1) षट्कर्मोपदेशरत्नमालाः रचयिता। महाकविश्री. अमरकीर्ति । भाषा अपभ्रंश । पृष्ठसंख्या १०४ साइज १०1४५ इञ्च । प्रत्येक पृष्ठ पर दस पंक्तियां तथा प्रतिपंक्तिमें ३५-४० अक्षर । अपभ्रंशभाषाका बहुत प्रसिद्ध ग्रन्थ है। कर्मसिद्धांतका सविस्तृत वर्णन किया गया है। रचना संवत् १२७४ लिपिसंवत् १५९६. The editor compiling the gefragat has not quoted the beginning and the end of the Ms. Moreover, he has wrongly stated that the work deals with the Doctrine of Karma. (३) प्रति नं. ३ पत्रसंख्या ७५ साइज १० x ५ इञ्च । ५४ से ६४ तकके पृष्ट नही है । साधारणतः ग्रन्थकी हालत अच्छी है । लेखकप्रशस्ति अथ नृपतिनिक्रमादित्यसंवत् ५५६८ वर्षे चैत्रमुदी २० सोमवासरे अलेषानक्षत्रे गोपाचलमहादुर्गे महाराजाधिराजश्रीमानसिंहराज्ये प्रवर्तमाने श्रीकाष्ठासंधे नंदिगच्छे विद्यागणे भट्टारकश्रीसोमकीर्तिदेवास्तत्पट्टे भट्टराकश्रीविजयसेनदेवास्तशिष्य ब्रह्मकाला इदं षट्कर्मोपदेशशास्त्रं लिखाप्य आत्मपठनार्थे। संवत् १५५३ वर्षे ज्येष्ठसुदी ५ भौमवारे श्रीमूलसंघे श्रीमत्रैविद्यभट्टारकश्रीप्रभचन्द्रदेवास्तत्पट्टालंकारगुज्जरलाडमालवकलिंगमहाराष्ट्रकर्णाटअंगवंगमगध ... ...। The colophon is incompletely given in the agradat as it should be in the particular Ms. The Mss. from Jaipur used by me for the text-construction are named in the प्रशस्तिसंग्रह as प्रति नं. २ ( Ms. C.); प्रति नं. ४ (Ms. B.). They along with the Dhruva Ms. of Gujarat Vidyāsabhā, Ahmedabad (Ms. A.) form the apparatus of the present text. The photo copies of the first and the last page of the Mss. A, B, C, are given in print at the beginning of the printed work. All Mss. are paper Mss. TL

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