Book Title: Bruhatkalp Sutram Pithika Part 01
Author(s): Sheelchandrasuri, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: Prakrit Granth Parishad
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________________ 16 कई स्थान पर लिखे हुए उपलब्ध होते हैं / निरर्थक अनुस्वार भी कई जगह मिलते हैं और कई जगह अनुस्वार लिखना ही भूल गये है / धम्म कम्म तम्मि आदि की जगह धंम कंम तंमि आदि कई जगह लिखा हुआ मिलता है। य श्रुति के स्थान में प्राय त का प्रयोग अधिक मिलता है जैसे समय-समत, आयरिय आतरित, राया राता / ह के स्थान पर ध, जैसे कहा कधा, गाहा=गाधा / कहीं कहीं य के स्थानमें इ और इ के स्थान में य, जैसे राइणा= रायणा, कइवय कयवय इत्यादि / कहीं कहीं एक ही अक्षर या शब्द, दुबारा भी लिपिकार ने लिख दिया है, और कहीं कहीं सरीखे अक्षर दो बार आते हैं तो लिपिकार उन्हें लिखना ही भूल गया है। कहीं लम्बे पाठ भी लिपिकार ने छोड़ दिये है। कहीं दुबारा भी पाठ लिख हुए मिलते हैं। पूना नं० 2 की प्रति अधूरी है कई पन्ने नहीं है। इसकी पूर्ति हमने पूना नं० 1 प्रति से की है। सभी प्रतियों की झेरोक्ष कोपी ही मिली है। कई जगह तो झेरोक्ष के पन्ने इतने अस्पष्ट और काले धब्बेवाले हैं कि उन्हें पढ़ना भी बड़ा कठिन था, अतः ऐसे अस्पष्ट अक्षर वाले पाठों को अन्यान्य प्रति की सहायता से जहाँ तक हो सके पाठ को शुद्ध करने का प्रयास किया है। - रूपेन्द्रकुमार पगारिया