Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation
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यज्ञयष्टिः
८६६
यत्किञ्चित्
०तत्पश्चात्। (सुद० १००)
जो कि, जो भी, जैसा। (समु० १/२०) यतात्मन् (पुं०) संयतात्मा। (वीरो० १८) यतिः (पुं०) साधु, श्रमण। (मुनि० ९१) दुर्भावं प्रयतेत रोहुमिति
यो रौद्रं तथार्तं यति। (मुनि० ३३) ०संयत (जयो० १/८०) संयमी। (जयो० २७/५३)
यते प्रयत्ने संयम-योगेषु यतमानः प्रयत्नवान् यति। (जैन० ९४) यतिर्यतिनिपुंसि स्त्री पाठ भेद विकारयोरिति। (जयो०
६/२५)
यज्ञयष्टिः (स्त्री०) पवित्र यष्टि। यज्ञवल्लिः (स्त्री०) सोम को लता। यज्ञशाला (स्त्री०) हवनस्थान, पूजास्थल। यज्ञसिद्धिः (स्त्री०) यज्ञपूर्ति, पूजा की पूर्ति, पूजन समाप्ति। यज्ञसूत्रं (नपुं०) पवित्रसूत्र। (सुद० ३/१३) यज्ञोपवीत।
(वीरो० १८/४०) यज्ञस्थलः (नपुं०) पूजन स्थान अष्टवटभूवि। (जयो०२/२५) यज्ञाझं (नपुं०) यज्ञ भाग। यज्ञार्थ (वि०) यज्ञ के निमित्त। (वीरो० १/३०) यज्ञानुष्ठान (नपुं०) यज्ञ क्रिया। (जयो० ८/२) यज्ञानुष्ठायिन् (वि०) यज्ञ कर्ता। (वीरो० १४/३) यज्ञिका (वि०) यज्ञ सम्बंधी, यज्ञपरक। यज्ञिकः (पुं०) देव। यज्ञिकदेशः (पुं०) यज्ञस्थान। यज्ञीय (वि०) यज्ञ सम्बंधी। यज्ञोपकरणं (नपुं०) यज्ञपात्र, पूजा की थाली। यज्ञोपवीतं (नपुं०) जनेऊ (समु० ३/४२) यज्ञसूत्र।
यज्ञोपवीतेऽपि सति, व्रतं पाल्यं मुमुक्षुणा। (हित० २९) यज्वन् (वि०) [यज्+क्वनिप्] यज्ञ करने वाला, पूजा करने
वाला, अर्चना करने वाला, अनुष्ठाता, अनुष्ठान कर्ता। यत् (अक०) यत्न करना, प्रयत्न करना। यतते (जयो०११/६८)
०प्रयास करना, उद्योग करना।
आतुर होना।
० श्रम करना, उद्योग करना। यत् (सक०) सताना, दु:ख देना, परेशान करना।
०लौटाना, फेर देना। यत (भू०क०कृ०) [यम्+क्त] ०दमन किया हुआ, नियंत्रित,
पराभूत।
०सीमित, संयत, मर्यादित। यतं (नपुं०) एड़ लगाना। यतनं (नपुं०) [यत्+ ल्युट्] चेष्टा, प्रयत्न। यतं (नपुं०) जो। यतर (वि०) जो। यतस् (अव्य०) [यद् तसिल्] ० जहां से, जो कि, जिस जगह
यतिः (स्त्री०) प्रबंध, रोक, नियंत्रण।
रोकना, ठहरना, आराम।
दिग्दर्शन, विश्राम। (जयो० १/९४) यतिचरित्रं (नपुं०) एक देवालय। (जयो० ९/५२) यतित (वि०) [यत्+क्त] चेष्टा की गई, यत्न किया गया।
(सुद० १/२२) यतित्व देखो ऊपर। प्रयत्न किया गया। यतिस्थितिः (स्त्री०) मुन्याचारपालक। (जयो० २१/७)
श्रमणोचित स्थिति। यतिदोषः (पुं०) विश्रान्ति विच्छेद। यतिधर्मः (पुं०) आगम निर्दिष्ट अनुष्ठान। यतिनायकः (पुं०) योगीश्वर। (सुद० १२६) ०आचार्य। यतिपति (पुं०) मुनिनायक, मुनिराज, (जयो० १/९५१)
यतेर्विश्रामस्य पतिः क्रियारहितः। (जयो० १/९४) यतिराड (पुं०) आचार्य। योगीश्वर, ०यतीश्वर। यतिराज् (पुं०) मुनिराज। (भक्ति०६) यतीन्द्रः (पुं०) मुनिन्द्र, ऋषिवर। ऋतीशः (सुद० ११५)
(जयो० १८/१०) यतीन्द्रभूपः (पुं०) मुनराज। (सुद० १२०) ०आचार्य। यतीश्वरः (पुं०) आचार्य मुनिराज। (सुद० ४५) यतोऽत्र (अव्य०) क्योंकि। (सुद० १३०) यत् (सर्व०) यः, स्त्री, या, नपुं यं देवी च यं धीयचयम्।
(सुद० ६८) 'ये ये रणन्नूपुरसाररसा' (वीरो० ) सुदमनोऽपि यस्य वो जातु। (सुद० १३२) यस्या मुखे कौसुमसंविकास (सुद० २/८) या नाम पात्री। (सुद० २/१०) यस्मिन् (सुद० १/२६) यया (सुद० ३/२०) येषां
(सुद० ११७) यत्किञ्चित् (अव्य०) जो कुछ भी। (सुद० ८३) (वीरो०
४/२६. समु० ३/३९)
चाहे जहां से। कि (समु० ३/३२) क्योंकि, चूंकि, इसलिए। (सुद० ८१) सहजा स्फुरति यतः समुनस्ता (वीरो० १५/५८)
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