Book Title: Bhiksha Vichar Jain tatha Vaidik Drushti Se
Author(s): Anita Bothra
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 3
________________ ५६ अनुसन्धान- ४० अर्थों में ये शब्द पाया गया । मनुस्मृति में उच्छवृत्ति के बारे में काफी चर्चा की गई है। भागवदपुराण तथा ब्राह्मणपुराण में अत्यल्पमात्रा में प्रयोग उपलब्ध हुए । पुराणों में से शिवपुराण में सर्वाधिक सन्दर्भ दिखाई दिये । दोनों परम्पराओं से प्राप्त इन सन्दर्भों का सूक्ष्मरीति से निरीक्षण यहाँ प्रस्तुत किया है। वैदिक परम्परा में 'उञ्छ' शब्द का प्रयोग धातु (क्रियापद) तथा नाम दोनों में प्रयुक्त है । धातुपाठ में यह उपलब्ध है । उञ्छक्रिया का अर्थ 'धान्य कण के स्वरूप में इकट्ठा करना' (to gather, to collect, to glean) इस प्रकार है ।' यशस्तिलकचम्पू में 'उञ्छति चुण्टयति' (to pluck) इस अर्थ में इस क्रिया का प्रयोग है । 'उञ्छ' क्रिया का सम्बन्ध वैयाकारणोंने ‘ईष्' क्रियापद से जोडा है । 'उञ्छन' क्रिया से प्राप्त जो भी धान्य कण है उस समूह को 'उञ्छ' कहा गया है । जैन परम्परा के प्राकृत ग्रन्थों में उच्छ किया का 'किया स्वरूप' में प्रयोग अत्यल्प मात्रा में दिखाई दिया। जो भी सन्दर्भ पाए गये वे सभी 'नाम' ही हैं। कही भी धान्य कण अथवा पत्र-पुष्प आदि का जिक्र नहीं किया है । 'भिक्षु द्वारा एकत्रित की गई साधु प्रायोग्य भिक्षा', इस अर्थ में ही इस शब्द का प्रयोग किया गया है । वैदिक परम्परा के ग्रन्थों में से उपलब्ध संदर्भों का चयन करने से 'उच्छ' का जो एक समग्र चित्र सामने उभर कर आता है वह इस प्रकार है । चान्द्र व्याकरण में उञ्छ क्रिया का प्रयोग 'इकट्ठा करना' इस सामान्य अर्थ में है । यहाँ कहा गया है कि, बेरों को चुननेवाला बदरिक कहलाता है | कौटिलीय अर्थशास्त्र में कहा है कि उञ्छजीवि आरण्यक, राजा को कररूप में उञ्छषड्भाग अर्पित करते हैं । यहाँ भी सिर्फ इकट्ठा करना अर्थ ही है । १. धातुपाठ ७.३६, २८.१३ २. पाणिनी - ४.४.३२, दण्डविवेक १ (४४.४); जैनेन्द्रव्याकरण ३.३.१५५ (२१४.१५) ३. यशस्तिलकचम्पू- १.४४९.६ ४. सिद्धान्तकौमुदी - ६.१.८९; दैवव्याकरण १६९ ५. चान्द्रव्याकरण ३.४.२९ ६. कौटिलीय अर्थशास्त्र १.१३ Jain Education International - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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