Book Title: Bhiksha Vichar Jain tatha Vaidik Drushti Se Author(s): Anita Bothra Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 9
________________ ६ २ अनुसन्धान- ४० दिया है । ५१ अन्तिमतः अज्ञात शब्द का तात्पर्य यह फलित होता है कि खुद का परिचय दिये बिना तथा अपरिचित कुलों से अल्पप्रमाण मं उञ्छ की गवेषणा करनी चाहिए । प्रचलित छन्द शब्द का प्रयोग नये अप्रचलित अर्थ से करने के लिए 'अन्नायउच्छं' शब्द के इतने सारे स्पष्टीकरण दिखाई देते हैं । वसुदेवहिण्डी में एक जैन साधु ने उञ्छवृत्तिधारक ब्राह्मण ५२ गृहस्थद्वारा भिक्षा ग्रहण करने का महत्त्वपूर्ण उल्लेख पाया जाता है। चूँकि साधु ने इस प्रकार के गृहस्थ से भिक्षा ली, इसका मतलब यह हुआ कि उसने यह भिक्षा प्रासुक और एषणीय मानी। इसके सिवा ब्राह्मण की साधु के प्रति परमश्रद्धा होने का उल्लेख है। इसमें दोनों परम्पराओं की एक-दूसरे के प्रति आदर रखने की यह भावना निश्चित रूप से स्पृहणीय है । कथाकोशप्रकरण में एक स्थविरा के द्वारा उच्छवृत्ति से काष्ठ इकट्टा करने का उल्लेख है ||३ इसका मतलब यह हुआ कि, 'केवल भिक्षा के लिए ही नहीं, अन्य चीजों के लिए भी इकट्ठा करना' यह उच्छ शब्द का प्रयोग दिखाई देता है । आवश्यक निर्युक्ति १२९५ में नारद - उत्पत्ति की एक कथा दी गई है । उसमें कहा है कि यज्ञयश तापस का यज्ञदत्त नाम का पुत्र और सोमयशा नाम की स्नुषा थी। उनका पुत्र नारद था । वह पूरा कुटुम्ब उच्छवृत्ति से निर्वाह करता था । उसमें भी वे लोग एक दिन उपवास और एव दिन भोजन लेते थे । ज्ञानपञ्चमी कथा में अरण्य से उच्छादिक ग्रहण करके अपनी पत्नी को देनेवाले पद्मनाभ नामक ब्राह्मण की कथा आयी हैं ।५४ इससे स्पष्ट होता है कि वैदिकों की उञ्छवृत्ति से जैन आचार्य काफी परिचित थे। और अरण्य से उच्छवृत्ति लाने के उल्लेख से कन्दमूल, फल, फूल, पत्ते आदि ग्रहण करने ५१. दश. अगस्त्यसिंह चूर्णि - ८.२३, ९.३.४ १०.१६; चूलिका २.५ ५२. वसुदेवहिण्डी पृ. २८४ ५३. कथाकोशप्रकरण ५४. ज्ञानपञ्चमीकथा ७.४ पृ. ३१.२३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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