Book Title: Bhiksha Vichar Jain tatha Vaidik Drushti Se
Author(s): Anita Bothra
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 10
________________ जुलाई-२००७ का वैदिक परम्परा का संकेत भी यहाँ मिलता है ।। जम्बुचरित ग्रन्थ में उञ्छशब्द में भिक्षा का प्रमाण बताने के लिए दो शब्दों का प्रयोग किया है । शकट के अक्ष के अग्रभाग जितनी तथा व्रण के उपर लगाये जानेवाली लेप जिनती ।५५ वैदिक परम्परा के पाण्डवचरित ग्रन्थ में जिसप्रकार कुन्तान शब्द का प्रयोग किया है उसी तरह का यह स्पष्टीकरण है ।५६ उपदेशपद में हरिभद्र ने उञ्छ शब्द को शुद्ध विशेषण लगाया है ५७ और शुद्ध का स्पष्टीकरण बयालीस दोपों से रहित दिया है । इसका मतलब यह हुआ कि केवल भिक्षा' इतने अर्थ मे भी 'उञ्छ' शब्द का प्रयोग होता था । लगभग १६वीं शती के आसपास जैन आचार्यों द्वारा जो प्रकरण ग्रन्थ या लघुग्रन्थ लिखे गये उनमें श्री विजयविमलगणिकृत 'अन्नायउञ्छकुलकं' प्रकरण का समावेश होता है । आहारशुद्धि, आहार के अतिचार आदि का प्रतिपादन करनेवाला यह संग्रहग्रन्थ है। भिक्षावाचक सारे दूसरे नाम दूर रखते हुए इन्होंने 'अन्नायउञ्छकुलकं' शीर्षक अपने कुलक के लिए चुना यह भी एक असाधारण बात है । 'अज्ञातउञ्छ' का मतलब वे बताते हैं - 'अनावर्जनादिना भावपरिशुद्धस्य स्तोक-स्तोकस्य ग्रहणं, अज्ञातो उञ्छग्रहणम् ।' बौद्ध जातकों में उञ्छचरिया बौद्ध (पालि) ग्रन्थों में भिक्षाचार्य के लिए 'उञ्छ' शब्द का प्रयोग किया गया है या नहीं यह देखने हेतु मुख्यत: जातककथाग्रन्थ देखे विविध जातकों में कमसे कम २५ बार उच्छचरिया, उञ्छापत्त, उञ्छापत्तागत इन शब्दों के प्रयोग मिलते हैं । यहाँ विविध स्थानों पर ब्राह्मण तापस के उञ्छाचर्या का निर्देश है । तथा बौद्ध भिक्षु (तापस, ऋषि) के उञ्छ का निर्देश है । अनेक बार वन में जाकर फलमूल भक्षण करना तथा बाद में गाँव-शहर आदि में आकर नमक तथा खट्टा (मतलब पका हुआ रसयुक्त भोजन) भोजन भिक्षा ५५. जम्बुचरित-१२.५४ ५६. पाण्डवचरित-१८.१४३ ५७. उपदेश पद - गा. ६७७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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