Book Title: Bhiksha Vichar Jain tatha Vaidik Drushti Se Author(s): Anita Bothra Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 1
________________ अनुसन्धान-४० भिक्षा-विचार : जैन तथा वैदिक दृष्टि से ('उञ्छ' शब्द के सन्दर्भ में) डॉ. अनीता बोथरा* भाण्डारकर प्राच्यविद्या संस्था में प्राकृत महाशब्दकोश के लिए विविध शब्दों की खोज करते हुए भिक्षावाचक बहुत सारे शब्द सामने आये। आचारांग, सूत्रकृतांग जैसे अर्धमागधी ग्रन्थों में, औपदेशिक जैन महाराष्ट्री साहित्य में, मूलाचार, भगवती आराधना जैसे जैन शौरसेनी ग्रन्थों में तथा अपभ्रंश, पुराण और चरित ग्रन्थों में भिक्षाचर्या के लिए उञ्छवित्ति, पिंडेसणा, एसणा, भिक्खायरिया, भिक्खावित्ति, गोयरी, गोयरचरिआ तथा महुकारसमावित्ति आदि शब्दों का प्रयोग किया हुआ दिखाई दिया । वैदिक परम्परा के श्रुति, स्मृति तथा पुराण ग्रन्थों में उञ्छवृत्ति, भिक्षाचर्या, भिक्षावृत्ति तथा माधुकरी ये चार शब्द भिक्षाचर्या के लिए उपयोजित किये हुए दिखाई दिये । उञ्छ तथा उञ्छवृत्ति इन शब्दों पर ध्यान केन्द्रित करके दोनों परम्पराओं के प्रमुख तथा प्रतिनिधिक ग्रन्थों में इस विषय की विशेष खोज की । भारतीय संस्कृति कोश में वैशेषिक दर्शन के सूत्रकर्ता 'कणाद' के बारे में निम्नलिखित जानकारी मिलती है - ___ महर्षि कणाद खेत में गिरे हुए धान्यकण इकट्ठा करके जीवन निर्वाह करते थे, इसलिए वे कणाद, कणभक्ष तथा कणभुज इन नामों से पहचाने जाते थे। वैशेषिक सत्र की 'न्यायकन्दली' व्याख्या में यह स्पष्ट किया है (न्यायकन्दली पृष्ठ ४) । 'कणाद' के शब्द के स्पष्टीकरण से उञ्छवृत्ति का संकेत मिलता है। जैन प्राकृत साहित्य : जैन प्राकृत साहित्य में कौन-कौनसे ग्रन्थों में कौन-कौनसे सन्दर्भ में उञ्छ या उञ्छ शब्द के समास प्रयुक्त हुए हैं इसकी सूक्ष्मता से जाँच की । निम्नलिखित प्राकृत ग्रन्थों से उञ्छ सम्बन्धी सन्दर्भ प्राप्त हुए । *सन्मति-तीर्थ, फिरोदिया हॉस्टेल, ८४४, शिवाजीनगर, बी एम.सी.सी. रोड, पुणे- ४११००४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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