Book Title: Bhiksha Vichar Jain tatha Vaidik Drushti Se
Author(s): Anita Bothra
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 6
________________ जुलाई-२००७ मिलाने का कहीं उल्लेख नहीं है इसलिए उञ्छवृत्ति के लोग नीरस आहार का ही सेवन अल्पमात्रा में करते थे ऐसा प्रतीत होता है। शिवपुराण में उञ्छ से अर्जित द्रव्य का भी उल्लेख वैशिष्ट्यपूर्ण है । उस द्रव्य को शुद्ध द्रव्य कहा है । शुद्ध द्रव्य का दान देने से हुई पुण्यप्राप्ति का भी वहाँ जिक्र किया उञ्छवृत्ति से रहनेवाले लोगों के लिए खग३४ तथा कबूतर२५ की उपमा भी प्रयुक्त की है । उञ्छशीलवृत्ति को 'कापोतव्रत' भी कहा है ।३६ जो मुनि या तापस खेती-बाडी से दूर अरण्यों में निवास करते थे वे आरण्य से निसर्गतः प्राप्त फल, कन्द, मूल, पत्ते आदि पर भी उपजीविका करते थे। उन्हें भी उञ्छजीवी कहा है ।३७ । महाभारत के सभापर्व में उञ्छवृत्तिधारी चार राजाओं का निर्देश है। अनेक नाम हैं - हरिश्चन्द्र, रन्तिदेव, शिबि और बलि १३८ आश्वमेधिक पर्व तथा शान्तिपर्व में दो बडे बडे बहुत विस्तृत उपाख्यान आये हैं । उनका नाम ही 'उञ्छवृत्तिउपाख्यान' है । उञ्छवृत्ति से अर्जित उपजीविका साधनों का अगर दान दिया तो व्रतधारी को अनशन ही होता है । उसका फल यज्ञ से भी अधिक कहा है । स्वर्गप्राप्ति भी कही है। नमूने के तौर पर वैदिक परम्परा के ये जो उल्लेख दिये हैं उससे सिद्ध होता है कि 'व्रत के स्वरूप वैदिकपरम्परा में' इस विधि का प्रचलन अत्यधिक था ! जैनपरम्परा में भी उञ्छ शब्द का प्रयोग तो पाया जाता है। लेकिन उसका स्वरूप पहले देखेंगे और बाद में शोधनिबन्ध के निष्कर्ष तक जायेगें। प्राकृत साहित्य में कालक्रम से तथा भाषाक्रम से कौन-कौन से ग्रन्थों ३३. शिवपुराण - १.१५.३९ ३४. बुद्धचरित - ७.१५ ३५. आश्वमेधिक पर्व - ९३.२ ३६. आश्वमेधिकपर्व - ९३.५ ३७. ब्रह्माण्डपुराण - १.३०.३६ ३८. सभापर्व - २.२२५.७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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