Book Title: Bhikkhu Jash Rasayan
Author(s): Jayacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 15
________________ जाता है, उतना कृष्ण पक्ष पर प्रकाश नहीं डाला जाता। पर तेरापंथ का इतिहास इस आरोप से मुक्त है। आचार्य भिक्षु ने स्वयं अपने हाथ से अपने में निकाले जाने वाले आरोपों की सूचि बनाकर विरोध-पक्ष को एक समीक्षा-मूल्य प्रदान कर दिया। हो सकता है उस समय कुछ लोगों को यह बात अच्छी नहीं लगी हो। भला, अपने आरोपों को और वे भी निराधार आरोपों को चुन-चुन कर इकट्ठा करना कौन सी बुद्धिमानी की बात हो सकती थी, पर आज लगता है वह दृष्टि कितनी प्रखर थी। आचार्य भिक्षु एक दूरदर्शी महापुरुष थे। उन्होंने जिस दूरदर्शिता से एक नई विधा को जन्म दिया, उसका आज एक ऐतिहासिक महत्त्व बन गया है। आज जब हम इस विधा का विश्लेषण करते हैं तो अनेक महत्त्वपूर्ण बातें सामने आती हैं। इसी से तेरापंथ में यह परम्परा बन गई है कि घटनाओं को गुणानुवाद के रूप में न लेकर यथार्थ के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास रहता है। जयाचार्य और इतिहास तत्त्व ___इतिहास लेखन की दृष्टि से जयाचार्य का कृतित्व विशिष्ट है। यद्यपि आचार्य भिक्षु ने अत्यंत कुशलता से अपने साहित्य में अपने आपको प्रतिबिम्बित कर दिया था, पर जयाचार्य ने इतिहास-तत्त्व को जितनी सूक्ष्मता से समझा-पकड़ा उतना बहुत कम लोग समझ-पकड़ पाते हैं। उन्होंने ही मुनिश्री हेमराजजी से इतिहास की बहुत सारी बातें जानी। तेरापंथ इतिहास में मुनिश्री हेमराजजी का अपना महत्त्वपूर्ण स्थान है। वे न केवल आचार्य भिक्षु के प्रत्यक्ष द्रष्टा शिष्य थे, अपितु छाया की तरह उनके अन्तेवास में रहे। वे एक प्रबुद्ध और मनस्वी संत थे। उनके सामने जो कुछ भी घटा उसे उन्होंने अत्यंत जीवंतता से देखाजाना। भिक्खु दृष्टांत उनकी स्मृति का ही कमाल था। इससे यह भी पता चलता है कि आचार्य भिक्षु कितने महान् व्यक्ति थे। उनके जीवन में, पल-पल में अनेक महत्त्वपूर्ण प्रसंग आए होंगे। यदि मुनिश्री हेमराजजी जैसे और भी संत होते तो न जाने हमें आज कितने और प्रसंग जानने को मिलते।। इतिहास लेखन की दृष्टि से तेरापंथ संघ में मुनिश्री कालूजी का भी बहुत बड़ा महत्त्व रहा है। उन्होंने ही पिछले इतिहास का संकलन कर ख्यात की विधिवत् शुरुआत की। यह उनकी ही प्रतिभा एवं परिश्रम का परिणाम है कि उनसे पूर्व के एक शती के हर संत-सती की प्रामाणिक जानकारी आज हमें ख्यात में उपलब्ध हो जाती है। पर इस लेखन का मुख्य श्रेय तो जयाचार्य को

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