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५ दशवैकालिक अ. ३ गा.६ १४ स्थानांग स्था. ९ सू. २५ ६ उववाई सू. १६१
१५ आचारांग श्रु. १ अ.४ ७ सूत्रकृतांग श्रु. २ अ. २ सू. ७१ १६ आचारांग श्रु. १ अ. ६ उ. २ सू. ४८ ८ उत्तराध्ययन अ. १४ गा. १२ । १७ आचारांग श्रु. १ अ. ४ उ. सू. ४५ ९ सुयगडांग श्रु. २ अ. ६ गा. ४४ १८ आचारांग श्रु.१ अ.५ उ.६ सू. १०७-१०९ १० उपासक दसा/१ अ.७ सू. ५१ । १९ आचारांग श्रु १ अ. २ उ. सू. १६६ ११ सुयगडांग श्रु. २ अ.५ गा. ३२ २० आचारांग श्रु. १ अ. ४ १२ विपाक श्रु. १ सू. ४२ ।
२१ आवश्यक अ.४ १३ स्थानांग स्था. १० सू. ९ (ढा. १२ दू. ३ से ढाल गाथा १६ तक)
यह तो केवल सुपात्र-दान का एक प्रसंग है। इसी तरह अनुकम्पा, पुण्य, कालवाद, इन्द्रियवाद, पर्यायवाद आदि अनेकानेक प्रसंग हैं, जिन पर आचार्य भिक्षु ने पूर्व धारणा से हट कर नई स्थापनाएं की थीं, जयाचार्य ने उन सारे प्रसंगों के न केवल सैद्धान्तिक प्रमाण की एकत्र किए हैं, अपितु अपेक्षित विवेचन भी किया है। संक्षेप में उन पर तार्किक-बौद्धिक सटीक सूचन भी दिए हैं, जो पाठक को आचार्य भिक्षु के पूरे विचार-दर्शन से अवगत कराते हैं।
आगमिक आधार ___ आचार्य भिक्षु को अपनी हर स्थापना को सुसंगत करने के लिए पूरे आगमों के एक-एक संदर्भ का प्रायोज्य अभिप्रेत खोजना पड़ा था। जयाचार्य ने लिखा है
दोय-दोय बार सूत्रां भणी, वांच्यां धर अति प्यार
सूत्र विविध निर्णय करी, गाढ़ी मन में धार (३ दू. ५) आचार्य भिक्षु के कथन को उद्धत करते हुए कहते हैं --
___म्है सूत्र बाचै निर्णय कियो रे, संक नहीं तिलमात। (५/३) अपने प्रति तथा आगमों के प्रति अचल विश्वास ही उनके आचार-विचार का मूलाधार था। वे कहते हैं-मैंने दो-दो बार सारे सूत्रों का स्वाध्याय कर अपने विचार-दर्शन का निर्धारण किया है।
धर्म जिनेश्वर भाखियो, गुरु जांणो निर्गंथ साची सरधा हो जाणो तंत सार, पावै तिणसूं पार (४/२) जिन आगम जोय प्रमाण किया।
इस प्रकार आचार्य भिक्षु की आगम निष्ठा को भिक्खु जश रसायण में बहुत ही दृढ़ता से स्थापित किया गया है। जयाचार्य ने कहा है --
भारी बुद्धि भिक्खु तणी, निर्मल मेल्या न्याय।
(voxiii)