Book Title: Bhikkhu Jash Rasayan
Author(s): Jayacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 13
________________ का पद्यात्मक भाष्य उनकी रचनाधर्मिता का मुखर प्रमाण है। उस विशालकाय ग्रंथ में जैन-दर्शन, तत्त्वचिन्तन के हजारों-हजारों शब्दों ने राजस्थानी शब्दकोश को समृद्ध किया है। 'उपदेश-रन-कथा-कोश', कथा साहित्य का गगनचुंबी शिखर है। व्याकरण, तत्त्व विद्या, भक्ति, आराधना, न्याय आदि अनेक विधाओं में उन्होंने . राजस्थानी को गौरवपूर्ण भूमिका पर प्रतिष्ठित किया है। आचार्य भिक्षु के नवम आसन के अधिशास्ता आचार्यश्री तुलसी ने अपने कवित्व और वक्तृत्व से राजस्थानी की विपुल श्री वृद्धि की है। अपने पूज्य गुरुदेव की स्मृति में लिखा हुआ पद्यमय जीवन वृत्त 'संस्कृत, प्राकृत और राजस्थानी का त्रिवेणी संगम है। उसमें प्राचीनता और आधुनिकता का संगम ही नहीं, सात्मीकरण भी है। महाकाव्य की शैली में लिखा वह जीवन वृत्त राजस्थानी साहित्य का चूडामणी है। उसका नाम है कालूयशोविलास। अन्य अनेक रचनाएं हैं और प्रति वर्ष निर्माण की सूची प्रवर्द्धमान है। यह कोई प्राकृतिक घटना या सहज संयोग है कि आचार्य भिक्षु, जयाचार्य और आचार्य तुलसी--तीनों की जन्म-भूमि मारवाड़ है और इनका मारवाड़ी अथवा राजस्थानी को समृद्ध करने में अपूर्व योग है। आचार्य भिक्षु की परंपरा में अनेक साधुओं तथा श्रावकों ने भी राजस्थानी वाङ्मय के विस्तार और विकास में अपना योग दिया है। मुनि हेमराजजी, मुनि वेणीरामजी, मुनि जीवोजी, मुनि सोहनलालजी, जैसे अनेक प्रतिभा सम्पन्न राजस्थानी के लेखक और कवि हुए हैं। भिक्षु चेतना-वर्ष में आचार्यश्री की सन्निधि में एक चिंतन चला और 'तेरापंथ का राजस्थानी वाङ्मय' की योजना बन गई। उसका प्रथम ग्रंथ पाठकों के हाथों में पहुंच रहा है- आचार्य भिक्षु का जीवन-वृत्त। जीवनवृत्त की नई शैली के आविष्कर्ता जयाचार्य की रचना धर्मिता का अनुत्तर उदाहरण है। इसमें जीवन, दर्शन, प्रज्ञा, प्रयोग और परिणाम-सब मुखर हैं पर सबमें सामंजस्यपूर्ण मौन का निदर्शन है। इसके संपादन में मुनि मधुकरजी और मुनि सुखलालजी ने बहुत निष्ठापूर्ण श्रम किया है। आचार्यश्री इस श्रम के केवल साक्षी नहीं हैं, आपका निरीक्षण और परीक्षण भी सतत इसके साथ चला है। फलतः संपादन का सौंदर्य स्वाभाविक है। युवाचार्य महाप्रज्ञ (xii) .

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