Book Title: Bhikkhu Drushtant
Author(s): Jayacharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva harati

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ पुरोवाक् यह पुस्तक आकार मे इतनी छोटी होने पर भी सामग्री की दृष्टि से बहुत ही महत्त्वपूर्ण है । इसमें स्वामीजी के ३१२ जीवन-प्रसंगों का संकलन है। ये जीवन-प्रसंग मुनि श्री हेमराजजी के लिखाये हुए हैं जो स्वामीजी के अत्यन्त प्रिय शिष्य थे और शासन के स्तम्भ स्वरूप माने जाते थे। इन प्रसंगों को श्रीमद् जयाचार्य ने लिपिबद्ध किया। इस पुस्तक के अन्त में जयाचार्य की कृति "भिक्षजश रसायण' के जो दोहे उद्धृत हैं उनसे यह बात स्पष्ट है। इन प्रसंगों में सहज स्वाभाविकता है। रंग चढ़ाकर उन्हें कृत्रिम किया गया हो ऐसा जरा भी नहीं लगता। इन हूबहू चित्रित जीवन-पटों से स्वामीजी के जीवन, उनकी वृत्तियों, उनकी साधना और उनके विचारों पर गम्भीर प्रकाश पड़ता है। स्वामीजी की सैद्धांतिक ज्ञान-गरिमा, प्रत्युत्पन्न बुद्धि, हेतु-पुरस्सरता, चर्चा-प्रवीणता, प्रभावशाली उपदेश-शैली और दृढ़ अनुशासनशीलता आदि का इन जीवन-प्रसंगों से बड़ा अच्छा परिचय होता है । जीवन-प्रसंगों का यह संकलन एक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक कृति है जो स्वामीजी के समय की जैन धर्म की स्थिति, उस समय के साधु-श्रावकों की जीवन-दशा तथा उनके आचार-विचारों की यथार्थ भूमिका को प्रामाणिक रूप से उपस्थित करती हुई स्वामीजी की जीवन-व्यापी अखण्ड साधना का एक सुन्दर चित्र उपस्थित करती है। श्रीमद् जयाचार्य ने इन दृष्टांतों का संकलन कर स्वामीजी के जीवन और शासन के इतिहास की महत्त्वपूर्ण घटनाओं को ही सुरक्षित नहीं किया वरन् उस समय की स्थिति का दुर्लभ इतिहास भी गुंफित कर दिया है, जिसके प्रकाश में स्वामीजी के व्यक्तित्व और कर्तृत्व का सही मूल्यांकन किया जा सकता है। मुनि हेमराजजी की दीक्षा सं० १८५३ में हुई थी। उनकी दीक्षा का प्रसंग बड़ा रसपूर्ण है। उसमें स्वामीजी की वैराग्यपूर्ण उपदेश-शैली का उत्कृष्ट उदाहरण मिलता है । साथ ही उससे मुनि हेमराजजी के व्यक्तित्व की सुन्दर झांकी मिलती है। इस पुस्तक में मुनि हेमराजजी और स्वामीजी के साथ घटे हुए अन्य भी कई प्रसंगों का उल्लेख है जो दोनों की जीवन-गरिमा पर गहरा प्रकाश डालते हैं । मुनि हेमराजजी दीक्षा के बाद चार वर्ष तक स्वामीजी की सेवा में रह। बाद में स्वामीजी ने उनका सिंघाड़ा कर दिया और उन्हें अलग विचरना पड़ा। इस पुस्तक में दिए गए प्रसंगों में से कुछ हेमराजजी स्वामी के रूबरू घटे हुए हैं। कुछ उन्होंने स्वामी जी से सुने । कुछ दृष्टांत ऐसे हैं जो दूसरों से उन्होंने सुने और प्रामाणिक समझ श्री जयाचार्य को लिखाये। __ स्वामीजी से चर्चा करने के लिए भिन्न-भिन्न प्रकृति और धर्मों के लोग आते। कुछ स्वामीजी को नीचा दिखाने के लिए आते, कुछ उनकी बुद्धि की परीक्षा करने, कुछ धर्म-चर्चा के नाम पर उनसे झगड़ा करने, कुछ सैद्धांतिक चर्चा करने और कुछ

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 ... 354