Book Title: Bhartiya Yog Parampara aur Gnanarnav
Author(s): Rajendra Jain
Publisher: Digambar Jain Trishala Mahila Mandal

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Page 257
________________ भारतीय ध्यान-योग की समृद्ध एवं वैभवशाली परम्परा के प्रस्थापक महर्षि वेदव्यास, महर्षि पतंजलि, आचार्य कुन्दकुन्द आदि जैसे अनेक साधक एवं सिद्धमहर्षियों ने ध्यान-योगसाधना के लिए जिस प्रकार की प्रक्रिया की प्ररूपणा की है, वह मूलत: अधिकांश साम्यता के आधार पर ही स्थिर है। उनकी प्रक्रिया में बतलाये गये योगांगों का क्रम व स्वरूप कदाचित् अनुक्रम में हो या न हो परन्तु उससे उपलब्ध होने वाली सिद्धि के लिए सभी एकमत एवं निश्चितमत दिखाई देते हैं। और यही इस परम्परा का महत्त्वपूर्ण अवदान है। आचार्य शुभचन्द्र ने भी इसी स्थापित परम्परा को समय एवं परिवेश के अनुकूल प्रस्तुत कर योग एवं ध्यान को सरल बनाने के साथ ही गौरवपूर्ण भी बनाया है। उनके द्वारा निरूपित प्रक्रिया जहाँ वैज्ञानिक वर्गीकरण एवं महाकाव्य जैसे प्रवाहमान कथानक की तरह व्यवस्थित है, वहीं सांगोपांग विवेचन के कारण उपादेय एवं सद्य: सफलता प्रदान करने वाली है। 216

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