Book Title: Bhartiya Yog Parampara aur Gnanarnav
Author(s): Rajendra Jain
Publisher: Digambar Jain Trishala Mahila Mandal

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Page 255
________________ 7. घोरपराक्रम - मुनियों को देखकर भूत, प्रेत, राक्षस, शाकिनी आदि का, डर जाना। बलऋद्धि बलऋद्धि के तीन भेद हैं - 1. मनोबल, 2. वचनबल और 3. कायबल। 1. मनोबल - अन्तर्मुहूर्त में सम्पूर्ण श्रुत को चिन्तन करने की सामर्थ्य / 2. वचनबल - अन्तर्मुहूर्त में सम्पूर्ण श्रुत को पाठ करने की सामर्थ्य। . 3. कायबल - महीनों तक एक ही आसन से बैठे या खड़े रहने की क्षमता अथवा अंगुली के अग्रभाग से तीनों लोकों को उठाकर दूसरी जगह रखने की सामर्थ्य का होना। औषधऋद्धि औषधऋद्धि आठ प्रकार की है। जिन योगियों-मुनियों के कफ, श्लेष्म, विष्ठा, कान का मल, दांत का मल, आंख और जीभ का मल, हाथ आदि का स्पर्श, विष्ठा, मूत्र, केश, नख आदि कथित या अकथित सभी पदार्थ औषध रूप बन जाते हैं और उनसे प्राणियों के असाध्य रोग भी नष्ट हो जाते हैं, वे औषधऋद्धि के धारी होते हैं। ये ऋद्धियाँ आठ प्रकार की होती हैं - 1. आमीषधि - योगी के हाथ-पैर आदि के स्पर्शमात्र से प्राणी का नीरोग हो जाना। 2. क्ष्वेलौषधि - योगी की लार, कफ, अक्षिमल और नासिकामल से जीवों का रोगों का विनाश। 3. जल्लौषधि - योगी के स्वेद, पसीने आदि से रोगों का नाश। 4. मलौषधि-योगी के जिह्वा, ओष्ठ, दांत, श्रोत्रादि के मल से जीवों के समस्त रोगों का नष्ट होना। 5. विप्रौषधि - योगी के मूल, विष्ठा आदि से जीवों के भयानक रोगों का नाश। 6. सर्वौषधि - योगी के स्पर्श किये हुए जल व वायु तथा रोम और नख आदि से व्याधि का निराकरण। 1. तिलोयपण्णत्ती, 4/1061-66. 2. वही, 4/1067-76. 214

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