Book Title: Bhartiya Yog Parampara aur Gnanarnav
Author(s): Rajendra Jain
Publisher: Digambar Jain Trishala Mahila Mandal

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Page 284
________________ देखो, जिन्दा भी हो या नहीं? महाराज विक्रमादित्य कहीं जा रहे थे। एक अत्यंत वृद्ध आदमी को देखकर उन्होंने पूछा 'महाशय! आपकी उम्र कितनी होगी? सफेद दाढ़ी हिलाते हुए उसने उत्तर दिया, श्रीमान जी, केवल चार वर्ष की। यह सुनकर राजा को बड़ा क्रोध आया। वह बोला-तुम्हें शर्म आनी चाहिये; इतने बूढ़े होकर भी झूठ बोलते हो। तुम्हे अस्सी वर्ष से कम कौन कहेगा? बूढा मुस्कुराकर बोला-श्रीमान् आप ठीक कहते हैं, किन्तु इन 80 वर्षों में से 76 वर्ष तक तो मैं पशु की तरह कुटुम्ब का बोझ ढोता रहा। अपनी ओर दृष्टि भी नहीं दी। अतः वह पशु का जीवन था। अभी 4 वर्ष से ही मैंने आत्मकल्याण की ओर दृष्टि दी है, इससे मेरी मनुष्य जीवन की आयु तो केवल 4 वर्ष की है।' बन्दर को किसने पकड़ा-मुर्खता ने या घड़े ने? - एक बन्दर एक मनुष्य के घर प्रतिदिन आता था और उधम करता था। कपड़े फाड़ देना, बर्तन ले जाना, बच्चों को नोच लेना, खाने पीने की वस्तुएँ फैला देना, उसका नित्य कार्य था। घर वाले उसके इस उपद्रव से परेशान थे। एक दिन घर स्वामी ने एक छोटे मुंह की हान्डी मँगायी और उसमें भुने चने डालकर हान्डी को भूमि में गाड़ दिया, केवल हान्डी का मुँह खुला हुआ था। सब लोग वहाँ से दूर चले गये। : वह बन्दर घर में आया। थोड़ी देर इधर-उधर कूदता रहा, जब उसने गड़ी हुई हान्डी में चने देखे तो हान्डी के पास आकर बैठ गया। चने निकालने के लिये उसने हान्डी में हाथ डाला और मुट्ठी में चने भर लिये। हान्डी का मुंह छोटा था. उसमें से मठी नहीं निकल सकती थी। बन्दर ने मठी निकालने के लिये जोर लगाया, चिल्लाने लगा और कूदने लगा। उस बन्दर ने समझ रखा था कि इस हान्डी ने मुझे पकड़ रखा है। घर स्वामी ने बन्दर को रस्सी से बांध कर बाहर भेद दिया। बन्दर को घड़े ने नहीं पकड़ रखा था, वह मुट्ठी खोल देता तो छूटकर भाग सकता था किन्तु उसकी अज्ञानता से वह पकड़ा गया था इसी प्रकार संसारी जीव अपने अज्ञान से बान्धा है किन्तु मानता है कि मुझे कर्म और शरीर आदि ने बांध रखा है। उपयोग से चमत्कार __पं. भूधरदास जी सामायिक कर रहे थे, उसी समय एक चूहा उनके पैर के फोड़े को काटता रहा, जिससे फोड़े में बड़ा घाव हो गया। सामायिक से उठने के बाद जब उनके घरवालों ने देखा, तो उन्हें बड़ा दुःख हुआ। अब उस फोड़े पर बार-बार मक्खी बैठती तो पं. जी उन्हें फौरन उड़ा देते; यह देखकर उनके भाई ने कहा-जब चूहा तो एक घण्टे तक काटकर इतना बड़ा घाव कर गया, तब तो आपने उसे भगाया नहीं; अब छोटी-सी मक्खी को बार-बार उड़ा रहे हैं। पं. भूधरदास जी ने उत्तर दिया- उस समय मैं अकेले अपने घर में (ध्यान में) था, वहाँ किसी की कुछ खबर नहीं रहती। यहाँ अब शरीर के साथ भी हूँ, इसलिये उसकी खबर भी रहती है। -

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