Book Title: Bhartiya Yog Parampara aur Gnanarnav
Author(s): Rajendra Jain
Publisher: Digambar Jain Trishala Mahila Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 285
________________ होना है सो होता है दिगोड़ा निवासी (म.प्र.) बाबा दौलतराम जी घोड़ों पर सामान रखकर कुछ साथियों के साथ दूसरे गांव जा रहे थे। जंगल में शाम के समय उनके सामायिक का समय हो गया। उन्होंने साथियों से कहा-भाई मैं तो सामायिक करूगां / एक साथी ने कहा-यहाँ डाकुओं का डर है तथा शाम भी हो गई हैं, अतः अगले गांव में पहुँचकर सामायिक कर लेना; लेकिन बाबाजी नहीं माने और सामायिक करने बैठ गये। साथी आगे चले गये। इतने में डाकु आये, उन्होंने बाबाजी को तो छोड़ दिया और आगे जाकर उनके साथियों को लूट लिया। सब ठाठ पड़ा रह जाएगा जब लाद चलेग बंजारा एक वृद्धा, राजा को जमीन का लगान नहीं चुका पायी, इससे राजा ने उसकी जमीन छीन ली। एक दिन बुढ़िया एक टोकरे में बहुत ही मिट्टी भरे हुये बैठी थी, उसी समय राजा वहाँ से निकल पड़ा। वृद्धा ने राजा से कहा-बेटा, मेरा यह टोकना उठवा देना। राजा ने कहा-यह टोकना तो बहुत वजनदार है, यह कैसे उठाया जा सकता है? तब वृद्धा बोली-जब इतना सा टोकना नहीं उठा सकते, तो मरते समय मेरा खेत कैसे उठा के ले जाओगे? यह सुनकर राजा की आंखे खुल गई। उसने वृद्धा की जमीन वापस कर, उससे क्षमा याचना की। बुझी लालटेन कोई अंधा अदामी रात को अपने मित्र के यहां से घर लौटने लगा तो मित्र ने जलती लालटेन उसके हाथ में थमा दी। अंधा हंसा और बोला - “यह मेरे किस काम आयेगी?" मित्र ने कहा “लाटने देखकर लोग तुम्हारे लिये रास्ता छोड़ देगें इसलिये इसे ले जाओ।" अन्धा लालटेन लेकर चल पड़ा और रास्ते में जब एक आदमी उससे टकरा गया तो वह अन्धा झल्लाया - "आंख मूंद का चल रहे हो क्या, दिखती नहीं मेरे हाथ में लालटेन?" इस पर उस आदमी ने उत्तर दिया - “पर भाई लालटेन तो बुझी हुई है।" सच है, लालटेन जल रही है या नहीं, इसे देखने के लिये भी आंख चाहिये।

Loading...

Page Navigation
1 ... 283 284 285 286