Book Title: Bhartiya Darshan ko Jain Darshaniko ka Avadan
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

View full book text
Previous | Next

Page 24
________________ जिसे निम्न बिंदुओ के आधार पर सम्यक् रूप से समझा जा सकता हैधर्म और दर्शन क्षेत्र में हरिभद्र का अवदान क्या है ? यह समझने के लिये इस चर्चा को हम निम्न बिंदुओं में विभाजित कर रहे हैंदार्शनिक एवं धार्मिक परम्पराओं का निष्पक्ष प्रस्तुतीकरण । 1. 2. अन्य दर्शनों की समीक्षा में शिष्ट भाषा का प्रयोग तथा अन्य धर्मो एवं दर्शनों के प्रवर्तकों के प्रति बहुमानवृत्ति । शुष्क दार्शनिक समालोचनाओं के स्थान पर उन्न अवधारणाओं के सार-तत्व और मूल उद्देश्यों को समझने का प्रयत्न । अन्य दार्शनिक मान्यताओं में निहित सत्यों को एवं इनकी मूल्यवत्ता को स्वीकार करते हुए जैन दृष्टि के साथ उनके समन्वय का 3. 4. 5. 6. 7. 8. 9. 10. प्रयत्न । अन्य दार्शनिक परम्पराओं के ग्रंथों का निष्पक्ष अध्ययन करके उन पर व्याख्या और टीका का प्रणयन करना । उदार और समन्वयवादी दृष्टि रखते हुए पौराणिक अन्ध-विश्वासों का निर्भीक रूप से खण्डन करना । दर्शन और धर्म के क्षेत्र में आस्था या श्रद्धा की अपेक्षा तर्क एवं युक्ति पर अधिक बल, किन्तु शर्त यह कि तर्क और युक्ति का प्रयोग अपने मत की पुष्टि के लिए नहीं, अपितु सत्य की खोज के लिए हो । धर्म साधना को कर्मकाण्ड के स्थान पर चरित्र की निर्मलता के साथ जोड़ने का प्रयत्न । मुक्ति के सम्बंध में एक उदार और व्यापक दृष्टिकोण | उपास्य के नाम-भेद को गौण मानकर उसके गुणों पर बल । Jain Education International भारतीय दर्शन को जैन दार्शनिकों का अवदान / 23 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34