Book Title: Bhartiya Darshan ko Jain Darshaniko ka Avadan
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 22
________________ अतिमहत्त्वपर्ण है। दूसरे उन्होंने ज्ञान और दर्शन के उपयोग (अनुभूति) में तादात्म्य स्थापित करके जैनदर्शन के क्षेत्र में केवली के उपयोग के सम्बन्ध में श्वेताम्बरों के क्रमवाद और दिगम्बरों के युगपवाद में समन्वय कर उनके तादात्म्य या अभिन्नता को बताया है। तीसरे जैनदर्शन के नयवादको, यह कहकर कि जितने कथन के प्रारूप हो सकते है उतने नय हो सकते है, व्यापक आधार दिया है। चौथे उन्होंने विभिन्न दर्शनों को विभिन्ननयों के आधार पर समझने की दृष्टि देकर विभिन्न दर्शनों में रहे हुए विवाद का समाहार या समन्वय करने का प्रयत्न किया है। Jain Education International भारतीय दर्शन को जैन दार्शनिकों का अवदान / 21 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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