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उत्तरप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ
१२७ इसी मन्दिरमें वे पुराने चरण या उनकी प्रतिकृति प्रतिष्ठित है उसका लेख इस प्रकार है-'वेरवेभद्रेन्दुसित मार्गशिषे भराख्ये २०८० काश्यां वराणसि सुपार्श्व सुजन्मे तीर्थे एषः क्रमाब्जयुगलं त्रिजगद्धिताम् । संस्थापितः सकलसंघदिगम्बरेण' है। मन्दिर शिखरबद्ध और विशाल है। इसकी प्रतिष्ठा संवत् १९५२ में मिती माघ शुक्ला ५ चन्द्रवारको बाबा रायदासजीके पुत्र बा. छेदीलालजीने करायी थी।
. गर्भगृहमें दो वेदियाँ तीन दर वाली हैं। मुख्य वेदीमें मूलनायक भगवान् सुपार्श्वनाथकी कृष्णवर्ण, पद्मासनस्थ डेढ़ फुट अवगाहनावाली भव्य प्रतिमा है। पीठिकापर स्वस्तिक चिह्न तथा लेख है। वक्षपर श्रीवत्स अंकित है। इसके अतिरिक्त ८ पाषाणकी तथा ५ धातुकी प्रतिमाएँ इस वेदीमें विराजमान हैं।
दायीं ओर दूसरी वेदी है। इसकी प्रतिष्ठा भी संवत् १९५२ में हुई थी। इसमें मुख्य प्रतिमा भगवान् सुपार्श्वनाथकी है जो २० इंच अवगाहना की है और कृष्णवर्ण कायोत्सर्गासनमें स्थित है। इनके अलावा ८ पाषाण प्रतिमाएँ और हैं।
इस मन्दिरको भी सुपार्श्वनाथकी जन्मभूमि माना जाता है।
भेलूपुर-भगवान् पार्श्वनाथका जन्म वर्तमान भेलूपुरा मुहल्लामें हुआ। उनके जन्म स्थानपर आजकल दो मन्दिर बने हुए हैं। एक कम्पाउण्ड के भीतर जैन धर्मशाला बनी हुई है। यह दिगम्बर-श्वेताम्बर समाजकी संयुक्त धर्मशाला है। इसमें सभी जैन बन्धु बिना किसी भेदभावके ठहर सकते हैं।
धर्मशालाके बाद एक दूसरा अहाता आता है । इस अहातेके द्वारके बायीं ओर श्वेताम्बर समाजका तथा दायीं ओर दिगम्बर समाजका कार्यालय है। इस अहातेके द्वारमें प्रवेश करते ही सामने जो मन्दिर आता है, वह दिगम्बर और श्वेताम्बर समाजका सम्मिलित मन्दिर है। तथा इसकी वेदियों पर दोनों सम्प्रदायोंकी प्रतिमाएं विराजमान हैं, दोनों ही सम्प्रदायवाले अपनीअपनी मान्यतानुसार पूजा-प्रक्षाल करते हैं।
मुख्य वेदीमें दोनों सम्प्रदायोंकी प्रतिमाएं विराजमान हैं। दिगम्बर समाजकी ४ प्रतिमाएँ हैं । एक प्रतिमा कृष्ण वर्ण, पद्मासन १५ इंच अवगाहनावाली है। इसपर न तो कोई चिह्न है और न लेख ही है । प्रतिमा गुप्तकालकी प्रतीत होती है।
तमा श्वेत पाषाण की, पद्मासन तथा ११ इंच अवगाहनाकी है। इसके ऊपर भी लांछन या लेख नहीं है। यह भी पूर्व प्रतिमाके समान प्राचीन है।
तीसरी प्रतिमा भगवान् पार्श्वनाथकी है। यह पद्मासन मुद्रामें १५ इंच ऊँची श्वेत पाषाणकी है। सिरपर सर्प-फण है। पीठिकापर सर्पका लांछन तथा लेख अंकित है। लेखके अनुसार इसकी प्रतिष्ठा संवत् १५६८ में हुई थी।
एक प्रतिमा पद्मावती देवीकी है । शीर्षपर पार्श्वनाथ विराजमान हैं। ___ इस वेदीमें श्वेताम्बर सम्प्रदायकी ९ पाषाणको और २ धातुकी प्रतिमाएं हैं।
वेदोके पीछे बाँयें आलेमें दो दिगम्बर प्रतिमाएँ हैं। एक शिलाफलकमें २४ प्रतिमाएँ हैं। यह चौबीसी बिलकूल वैसी ही है, जैसी इस मन्दिरके पासवाले दिगम्बर जैन मन्दिरमें है। यह अभिलिखित है । मूर्ति-लेखके अनुसार इसका प्रतिष्ठाकाल वि. संवत् ११५३ है । दूसरी मूर्ति कृष्ण पाषाणकी पद्मासनमें भगवान् पार्श्वनाथकी है। इस मूर्तिपर कोई लेख नहीं है। किन्तु यह प्रतिमा पूर्वोक्त चौबीसीके ही समकालीन प्रतीत होती है।