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उत्तरप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ
१६५ ली। तब इन्द्रों, देवों और मनुष्योंने भगवान्का तप कल्याणक मनाया', चौदह वर्ष तक भगवान्ने घोर तप किया और जब घातियाकर्म नष्ट करके कार्तिक कृष्णा ४ को केवलज्ञान हो गया, तब भी देवों और मनुष्योंने श्रावस्ती के सहेतुक वनमें बड़े उल्लासके साथ ज्ञानकल्याणकका पूजन किया । इस प्रकार इस नगरीको भगवान सम्भवनाथके चार कल्याणक मनानेका सौभाग्य प्राप्त हआ है। इससे यह पवित्र नगरी एक महान् तीर्थके रूपमें मान्य हो गयी।
हरिवंशपुराण ( सर्ग २८ श्लोक २९ ) के अनुसार जितशत्रु नरेशके पुत्र मृगध्वजने श्रावस्तीके उद्यानमें मुनिदीक्षा धारण कर सिद्ध पद पाया।
___ करकण्डु चरिउ (पृ. १८१ ) में वर्णन आया है कि श्रावस्तीके प्रसिद्ध सेठ नागदत्तने स्त्रीचरित्रसे खिन्न होकर मुनि-दीक्षा ले ली और अन्तमें यहींसे मुक्ति-पद प्राप्त किया। इस प्रकार श्रावस्ती सिद्धक्षेत्र भी है।
यहाँपर भगवान् महावीरका समवसरण कई बार आया था। उनकी अमृतवाणी सुनकर श्रावस्तीके अनेक नागरिक महावीरके भक्त बन गये थे।
श्रावस्तीके सम्बन्धमें एक घटना इस प्रकार भी मिलती है-यहाँका नरेश जयसेन बौद्ध धर्मका उपासक था। शिवगुप्त उसका गुरु था। एक बार आचार्य यतिवृषभ वहाँ पधारे । राजा-प्रजा सभी उनके दर्शनार्थ गये । उनका उपदेश सुनकर राजाने जैनधर्म धारण कर लिया। शिवगुप्तको इससे बड़ा क्षोभ हुआ। वह पृथ्वीनरेश सुमतिके पास गया जो उसका शिष्य था। उसने राजासे शिकायत की। राजाने एक धर्तको जयसेनकी हत्या करनेका कार्य सौंपा। वह धर्त श्रावस्ती पहुँचा । उसने आचार्य यतिवृषभसे मुनि-दीक्षा ले ली। एक दिन राजा जयसेन मन्दिरमें मुनिवन्दनाके लिए गया। जब वह नवदीक्षित मुनिके चरणोंमें झुका तो उस धूर्तने राजाकी हत्या कर दी और भाग गया। आचार्यने यह देखकर विचार किया कि लोग मेरे ऊपर हत्याका सन्देह करेंगे। अतः उन्होंने दीवालपर घटना लिखकर आत्महत्या कर ली।
-हरिषेण कथाकोष, कथा १५६ । पार्श्व परम्पराके मुनि केशीसे भगवान् महावीरके पट्ट गणधर गौतम स्वामीकी जिस भेटका उल्लेख मिलता है, वह श्रावस्तीमें ही हुई थी। श्वेताम्बर आगमोंके अनुसार भगवान् महावीरके कई चातुर्मास भी यहाँ हुए थे। इस प्रकारके स्पष्ट उल्लेख श्वेताम्बर आगमोंमें मिलते हैं।
प्राचीन कालमें यहाँपर जैनोंके अनेक मन्दिर और स्तूप बने हुए थे। भगवान् सम्भवनाथका एक विशाल मन्दिर भी यहाँ निर्मित हआ था। इस मन्दिरके सम्बन्धमें श्री जिनप्रभ सरिने 'विविध-तीर्थ-कल्प' में लिखा है-'यहाँका भगवान् सम्भवनाथका विशाल जिनभवन रत्ननिर्मित था। जिसकी रक्षा मणिभद्र यक्ष किया करता था। इस यक्षके प्रभावसे मन्दिरके किवाड़ प्रातः होते ही स्वयं खुल जाते थे और सूर्यास्त होते ही बन्द हो जाया करते थे। ____ इस सुन्दर जिनभवनको सुल्तान अलाउद्दीनने बहराइचकी विजयके समय तोड़ दिया।
१. तिलोयपण्णत्ति-४।६४३, ६४६ । २. तिलोयपण्णत्ति-४।६८१ । ३. श्रावस्ती नगरी कल्प। ४. भूगोल-संयुक्त प्रान्तांक, पृ. २८६ ।