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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ
-साकेतपुरीमें माता मंगला और पिता मेघप्रभसे श्रावण शुक्ला ११ को मघा नक्षत्रमें सुमतिनाथ तीर्थंकरका जन्म हुआ।
जेठस्स वारसीए किण्हाए रेवदीसु य अणंतो। साकेदपुरे जादो सव्वजसासोहसेणोहिं ।
-तिलोय०४।५३९ -अनन्तनाथ जिनेश्वरका जन्म साकेतपुरमें सर्वयशा माता और सिंहसेन पितासे ज्येष्ठ कृष्णा १२ को रेवती नक्षत्रमें हुआ।
इसी प्रकारके उल्लेख उत्तर पुराण सर्ग ४८, पद्मपुराण सर्ग २०. हरिवंश पुराण सर्ग ६० में मिलते हैं, जिनसे सिद्ध होता है कि पाँच तीर्थंकरोंका जन्म अयोध्यामें हुआ।
जैन साहित्यमें अयोध्याके अनेकों नाम मिलते हैं. जैसे अयुध्या, अयोध्या, साकेत, कोसला, रामपुरी, विनीता, विशाखा । जैन पुराणोंमें इन नामोंके कारण भी दिये हैं । वह अयोध्या कहलाती थी, क्योंकि कोई शत्रु उससे युद्ध नहीं कर सकता था।
उसको साकेत इसलिए कहते थे, क्योंकि उसमें सुन्दर-सुन्दर मकान थे। अथवा सुरअसुर आदि तीनों जगत्के जीव वहाँ सबसे पहले एक साथ पहुंचे थे।
वह सुकोशल देशमें थी, अतः वह सुकोशला कहलाने लगी। उसका नाम विनीता भी था, क्योंकि उसमें शिक्षित विनयी पुरुष बहुत थे।
यह नगरी प्रारम्भ से ही जैनधर्मकी केन्द्र रही है। यहाँ अनेक बार भगवान् ऋषभदेवका समवसरण आया था। अन्य तीर्थंकर भी यहाँ अनेक बार पधारे और उनकी लोक-कल्याणकारी दिव्य ध्वनि सुनकर अयोध्यावासियोंने आत्म-कल्याण किया ।।
यहाँ श्री रामचन्द्रजीके कालमें देशभूषण कुलभूषण केवली भगवान् पधारे थे और वे महेन्द्रोद्यान वनमें ठहरे थे ।
मन्वादि चारणऋद्धिधारी सप्तर्षि मथरामें चातुर्मास करते समय यहाँ कई बार पधारे थे और सती सीताके घर आहार लिया था। कोटिवर्ष नरेश चिलातने यहाँके सुभूमिभाग उद्यानमें भगवान् महावीरके निकट मुनि-दीक्षा ली थी।
भद्रारक ज्ञानसागरजी ( १६वीं शताब्दीका अन्तिम चरण और १७वीं शताब्दीका प्रथम चरण ) ने अयोध्याका उल्लेख 'तीर्थ वन्दन संग्रह में इस प्रकार किया है
कोशल देश कृपाल नयर अयोध्या नामह । नाभिराय वृषभेश भरत राय अधिकारह ।
१. आदिपुराण पर्व १२, श्लोक ७.६ । २. आदिपुराण पर्व १२, श्लोक ७७ । ३. हरिवंश पुराण पर्व ८, श्लोक १५० । ४. आदिपुराण पर्व १२, श्लोक ७७ । ५. आदिपुराण पर्व १२, श्लोक ७८ । ६. पद्मपुराण ८५।१३६ । ७. पद्मपुराण ९२।७८ ।